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________________ प्रस्तावना पूज्यपादश्री का जन्म गुजरात की राजधानी अहमदाबाद के धर्मपरायण परिवार में हुआ। पूज्य श्री ने गृहस्थावस्था में G.D.A. की परीक्षा एवं दोवेकर ऑफ इंग्लेन्ड ( The Banker of England) द्वारा संचालित प्रथमपरिक्षा श्रेष्ठतम योग्यता पूर्वक उत्तीर्ण हुए । पूज्य श्री ने युवावस्था में संयम अंगीकार कर परम गुरुश्री प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा के पुनित चरणों में जीवन समर्पण किया । तप त्याग और अप्रमत्त संयम की कठोर साधना के साथ-साथ दर्शनशास्त्र ( Philosophy) का गहरा अध्ययन किया । पूज्यपादश्री की संवेग और विराग से परिपूर्ण देशना को सुनकर सैकडों भव्यात्माओं ने प्रव्रज्या को अंगीकार कीया हैं । धार्मिक शिविर, दिव्यदर्शन पत्र एवं अन्य विपुल साहित्य के माध्मय से राग, द्वेष, विषय, कषाय से संतप्त आबालवृद्ध हजारों आत्माओं के जीवन में क्षमा सहिष्णुता शान्ति और समाधि का अपूर्व दर्शन कराते हैं वो आत्माएँ की मोक्ष ओर नित्य प्रतिदिन अग्रसर होती हैं। . आज पूज्यपाद श्री साधिक द्विशत मुनिओं के गच्छाधिपति पद पर आरुढ है। एसे गौरवशाली गुरुवर को कोटी-कोटी वंदना । सिद्धान्तदिवाकर पूज्यपाद आचार्य श्री जयघोषसूरीश्वरजी म. सा. आपश्री ने वाल्यवय में ही दीक्षा अंगीकार कर पूज्यपाद गुरुदेवों के चरणों में जीवन समर्पित किया । पूज्य गुरुदेवों की कृपा बल से गहन अध्ययन किया। आपश्री आगम और कर्मसाहित्य के प्रकाण्ड विद्वान है। सैद्धान्तिक समस्या का शीघ्र सचोट समाधान करना आपश्री की महती विशेषता है मानो कि आपश्री किमी विशाल लाइब्रेरी के यान्त्रिक कम्प्यूटर न हो। वाचना आलोचना आदि के माध्यम से साधुओं को अध्ययन, अध्यापन एवं संयम में दृढ़ करने के हेतु आपश्री सर्वत्र विख्यात है । बंधविहाण विगेरे कर्ममाहित्य ग्रन्थों के मर्जन में आपश्री का महत्वपूर्ण योगदान है । विद्वान् होते हुए भी आपश्री पृज्यों के प्रति विनयशील व सरल प्रकृति के है। सहजानंदि पूज्यपाद आचाय श्री धर्मजित्सूरीश्वरजी म. सा. आपश्री कर्मसाहित्य के अगाध ज्ञानी है। सदेव आत्मस्वरूप में रमण करना, पौद्गलिक मावों से अलिप्त रहना आप श्री की विलक्षण योग्यता थी । जिनभक्ति में मस्त बन जाते थे । विहार को ५.१० कि.मी. चढाकर भी आसपास के जिनालयों के दर्शनार्थ पहोंच जाते थे। वाचनादि के माध्यम से साधुओं के ज्ञानसंयम रूपी उद्यान को सदैव सींच कर उसे विकसित रखते थे। बंधविहाण आदि कर्म साहित्य के ग्रन्थों के सर्जन में आपश्री का हेतु तर्क आदि विषयक महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं । पूज्यपाद श्री आज हमारे बीच में विद्यमान नहीं है फिर भी आप श्री की साधना अमर हैं । भव्यात्माओं को मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ने के लिए सदैव प्रेरणा देती है और देती रहेगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001832
Book TitleKarmaprakrutigatmaupashamanakaranam
Original Sutra AuthorShivsharmsuri
AuthorGunratnasuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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