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________________ [ ११. पदार्थों का सामान्य विवेचन कर, इदमुक्तं भवति, इयमत्र भावना, वय ब्रुमः, इदमत्रवधेयम्, आदि पदों से गम्भीर पदार्थोंों का सरल संस्कृत भाषा में स्पष्टीकरण करने का अथाग प्रयत्न कीया गया है । प्रस्तावना क्लिष्टपदार्थों का असत् कल्पना से गणितप्रक्रिया द्वारा रहस्यार्थ प्रकटीकरण की प्रक्रिया अपनाई है | उदाहरणार्थ पृष्ठ संख्या ३३ से ३७ पर यथाप्रवृत्तकरण में प्रतिसमय अध्यवसायस्थान असंख्येयलोकाकाशप्रदेश प्रमाण होते हैं । अध्यवसायों की अनुवृत्ति यथाप्रवृत्तकरण के कण्डक प्रमाण समयों तक चलती हैं | प्रथमकण्डक के प्रथम सामायिक जघन्य विशुद्धि से द्वितीय समय की जघन्य विशुद्धि अनन्तगुण होती हैं। इस प्रकार यावत् प्रथमकण्डक के चरम समय तक समझना । उससे प्रथमकण्डक के प्रथमसमय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुण होती है । गणितप्रक्रिया में प्रथम समयवर्ति १००४ अध्यवसायो के चार खण्ड ( Group ) माने हैं (१) १ से २४८: (३) ४९९ से १५० (२) २४६ से १९८ (४) ७५१ से १००४ ( First group ) की जघन्य विशुद्धि द्वितीय कण्डक के प्रथम समयवर्ति प्रथमखण्ड १०००५ हैं । प्रथम सामायिक प्रथम खण्ड ( Group ) के प्रथम अध्यवसाय न० १ की जघन्य विशुद्धि से द्वितीयसमयवर्ति प्रथमखण्ड ( First Group ) न० २४९ अनंतगुण हैं उससे तृतीयसमय के प्रथम खण्ड ( Group ) की जघन्यविशुद्धि न० ४६९ अनंतगुण है उससे चतुर्थ समवर्ति प्रथम खण्ड ( Grou) ) की जघन्य विशुद्धि ७५१ अनंतगुण है उससे प्रथम समयवर्ति प्रथम खण्ड ( Grous) की उत्कृष्ट विशुद्धि न० १००४ अनंतगुण है " इत्यादि उससे भी द्वितीय समयवर्ति प्रथम खण्ड ( Group ) की जघन्य विशुद्धि न० १००५ अनंतगुण है । इसी प्रकार पृष्ठ संख्या ४० पर अपूर्वकरण में प्रवेश होने पर एक स्थितिघात में हजारों रसघात होते हैं । असत् कल्पना से उसके स्थान पर तीन रसघात एवं अनन्तराशि के स्थान पर दस संख्या कल्पित की गई है। अनुभागसत्ता प्रारम्भ में १००० • करोड स्पर्धक मानी गई है । एक रसघात होने पर अनन्तगुण हीन १०० करोड स्पर्धक की सत्ता बताई गई है इसी प्रकार अपूर्वकरण के अंत १० स्पर्धक की सत्ता बताई गई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001832
Book TitleKarmaprakrutigatmaupashamanakaranam
Original Sutra AuthorShivsharmsuri
AuthorGunratnasuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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