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________________ PROPPERS अष्टादशः जयश्रिया संजनितानरागैः स्वसैनिकैः संपरिवारितस्तैः। तस्थौ परस्याभिमुखो मुहतं रणाजिरे युद्धमदोपनद्धः॥२२॥ उपेन्द्र सेन प्रतिचोद्ययातास्तद्योधवीरा विदितास्त्रयोगाः।। शरोरुधारास्त्वमुचन्नजस्र प्रावृट्पयोदा इव वारिधाराः ॥ २३ ॥ तच्छौर्यवीर्यप्रतिनष्टचेष्टस्तत्सैनिकाक्रान्तहृतप्रतापः तद्बाणनिभिन्नतनः स मन्त्री तिरोदधे स्म स्वनराधिपेन ॥ २४ ॥ उपेन्द्रसेनाभिहतप्रतापं प्रभग्नसेनं विजयं निरीक्ष्य । कश्चिद्धटस्तूर्णमुपेत्य तस्य स्थितः पुरस्तावनपेतसस्वः ॥ २५ ॥ परितम् सर्गः उपेन्द्रका प्रत्याधात उसके जिन सैनिकोंको विजयश्रीके प्रति दृढ़ अनुराग था वे सबके सब उसको घेरे हुए व्यूहरूपसे उसके साथ, साथ आगे बढ़ रहे थे फलतः युद्धके मदसे अभिभूत होकर वह एक मुहूर्त भरके ही लिए रणनीतिपटु शत्रु के सामने समरभूमिमें जम सका था ॥ २२ ॥ उस समय वह अपने साथ बढ़नेवाले प्रधान सैनिकोंको आगे बढ़नेके लिए प्रोत्साहित कर रहा था अतएव कुशल शस्त्रसंचालक वे योद्धा भी अपने धनुषोंसे वाणोंकी महाधारा ही बरसा रहे थे, मानो वर्षाकालीन मेघ बिना रुके ही मूसलाधार । जलवृष्टि कर रहे हैं ॥ २३ ॥ उपेन्द्रसेनके शौर्य तथा वीर्यके पूरमें महामंत्री विजयको कोई काम करना ही कठिन हो गया था, उसके उद्धत सैनिकोंने उसे चारों ओरसे घेरकर सर्वथा निस्तेज कर दिया था। इतना ही नहीं उपेन्द्रके वाणोंकी मारसे उसका शरीर भी क्षत-विक्षत हो गया था। इन सब कारणोंसे महाराज देवसेनने स्वयं बढ़कर उसे अपनी आड़में ले लिया था ॥ २४ ॥ कश्चिद्भटका आक्रमण उसी समय अद्वितीय योद्धा कश्चिद्भटने देखा कि महामंत्री विजयकी सेना शत्रु के आक्रमणसे छिन्न-भिन्न हो गयी है। तथा मंत्रीका निजी प्रताप ( सूर्य ) भी उपेन्द्रसेनके रणकौशल ( राहु ) के द्वारा ग्रस लिया गया है । तब वह बड़े वेगसे आगे बढ़ा था । और मंत्रीके आगे जाकर शत्र के सामने जम गया था क्योंकि उसका सामर्थ्य तो महायुद्ध करके भी न घटा था ॥ २५ ॥ ARSUREIRIDEUROPERATORS [३३४ १. [ उपेन्द्रसेनं ]। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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