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________________ रु मन का मीत MANISHARMA NAVामात RAMMARHINORITAGE कहता! धीरे-धीरे तुम पाओगे तुमने औरों के सामने भी स्वीकार तैयार हैं, तू दे न दे। हमने प्रार्थना भेज दी है, तू पूरी कर, न कर। करना शुरू कर दिया। क्या है जगत के पास जो तुमसे छीन फल तेरे हाथ में है। प्रार्थना हमने कर दी है। तू यह न कह लेगा? देने को क्या है? पद, प्रतिष्ठा, सब झूठे लुभावने भ्रम सकेगा कि हमने प्रार्थना न की। हैं। छीन क्या लेगा? जो तुमसे छीन सकता है जगत, वह किसी एक छोटा बच्चा बगीचे में खेल रहा है। उसका बाप पास ही मूल्य का नहीं। जो तुम्हें दे सकता है, वह किसी मूल्य का नहीं। बैठा हुआ है। वह बच्चा एक बड़ी चट्टान को उठाने की कोशिश और इससे छिपाकर जो तुम खोते हो, वह बहुमूल्य है। और इसे कर रहा है, वह उठती नहीं। वह सब तरफ से खींचने की प्रगट करके अपने चित्त को तुम जो पाओगे, वह तुम्हारी आत्मा | कोशिश कर रहा है, लेकिन वह उससे ज्यादा वजन की है। है। वह परम धन है। सदा से है। हिलती भी नहीं। आखिर उसके बाप ने उससे कहा, तु अपनी महावीर ने जैसा कहा. जीसस ने जैसा कहा. हिंदओं ने जैसा परी ताकत नहीं लगा रहा है। उसने कहा, मैं अपनी परी ताकत माना, किसी न किसी के समाने हृदय को खोलना है। किसके लगा रहा हूं। जितनी लगा सकता हूं, पूरी लगा रहा हूं। बाप ने सामने खोलते हो, यह बात उतनी महत्वपूर्ण नहीं है; खोलते हो, कहा कि नहीं, तेरी ताकत में यह भी सम्मिलित है कि तू मुझसे भी यह बात महत्वपूर्ण है। जिसके सामने खोल सको, वहीं खोल कह सकता है कि साथ दो। तू पूरी ताकत नहीं लगा रहा है। तेरी देना। अपने प्रिय के सामने खोल देना। अपनी पत्नी के सामने ताकत में यह भी सम्मिलित है कि तू मुझसे भी कह सकता है कि खोल देना। अपनी मां के सामने खोल देना। अपने मित्र के आओ, इस चट्टान को उठाने में साथ दो। सामने खोल देना। जिसके पास भी तुम पाओ कि सुविधा है। प्रार्थना पूरी ताकत है। जो तुम कर सकते हो तुमने किया, फिर खोल देने की, दूसरा निंदा न करेगा, वहीं खोल देना। तो वहीं तुम परमात्मा से कहते हो कि हम सीमित हैं, अब तू भी कुछ थोड़ा-सा गुरु प्रसाद मिलेगा। हां, गुरु मिल जाए, तब तुम्हें पूरा साथ दे। आकाश मिलेगा। यं तझको अख्तियार है तासीर दे न दे तेरे गुनाहगार गुनाहगार ही सही दस्ते-दुआ हम आज उठाये हए तो हैं तेरे करम की आस लगाये हुए तो हैं अपने हाथ हमने प्रार्थना में उठाये हैं, अब तेरी मर्जी! यूं तुझको अख्तियार है तासीर दे न दे यह हाथ उठाना आदमी एकदम से परमात्मा के सामने नहीं कर दस्ते-दुआ हम आज उठाये हुए तो हैं सकता, क्योंकि परमात्मा का हमें कोई पता नहीं। कहां है? भक्त कहता है किस दिशा में है? कौन है? कैसे पुकारें? क्या है उसका तेरे गुनाहगार, गुनाहगार ही सही नाम? क्या कहें? कौन-सी भाषा वह समझता है? गुरु के माना कि हम पापी हैं, स्वीकार। पास आसान है। वहां से हम जीवन का क, ख, ग सीखते हैं। तेरे करम की आस लगाये हुए तो हैं वहां से हम परमात्मा की तरफ पहली सीढ़ी लगाते हैं। वह लेकिन तेरी करुणा की आशा लगाये बैठे हैं। तू क्षमा करेगा, पहला पायदान है। क्योंकि गुरु हमारे जैसा है और हमारे जैसा यह भरोसा है। नहीं भी है। कुछ-कुछ हमारे जैसा है और कुछ-कुछ हमसे तेरे करम की आस लगाये हुए तो हैं पार। कुछ-कुछ हमारे-जैसा है और कुछ-कुछ परमात्मा जैसा यूं तुझको अख्तियार है तासीर दे न दे है। गुरु एक अदभुत संगम है, जहां आदमी और परमात्मा का क्षमा कर या न कर, यह तेरी मर्जी। मिलन हुआ है। यं तुझको अख्तियार है तासीर दे न दे जहां तक हमारे जैसा है वहां तक तो हम उससे बोल सकते हैं। दस्ते-दुआ हम आज उठाये हुए तो हैं वहां तक तो हम कह सकते हैं। वहां तक तो वह हमें समझेगा। लेकिन प्रार्थना में हमने अपने हाथ उठाये हैं। त हमसे यह न | और जहां वह हमारे जैसा नहीं है, वहां से उसकी क्षमा आयेगी। कह सकेगा कि हमने हाथ न उठाये थे। तेरी करुणा के लिए हम यही गुरु का चमत्कार है। यही गुरु की महिमा है। है मनुष्य, 251 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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