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________________ 74 जिन सूत्र भाग : 1 खींच-खींचकर फूल बनाना पड़ता है? पौधों को जमीन से खींच-खींचकर बाहर निकालना पड़ता है? अपने से बढ़े चले आते हैं। कलियां लग जाती हैं। कलियां खिल जाती हैं, फूल बन जाते हैं। फूल बन जाते हैं, सुगंध बिखर जाती है - हवाओं में, आकाश की यात्रा पर निकल जाती है। सब चुपचाप होता चला जाता है। ऐसा ही आदमी भी है। पर आदमी की अड़चन यह है कि आदमी के पास सोच-विचार का यंत्र है, उससे अड़चन खड़ी होती है। जरा किसी गुलाब के पौधे को सोच-विचार का यंत्र दे दो, बस मुश्किल हो जायेगी। फिर गुलाब मुश्किल में पड़ा। फिर हजार अड़चनें खड़ी हो जायेंगी। क्योंकि वह सोचेगा, कितना बड़ा फूल चाहिए। पड़ोसी गुलाब से ईर्ष्या भी जगेगी। ईर्ष्या के साथ राजनीति पैदा होगी, महत्वाकांक्षा जगेगी कि मैं सबसे बड़ा गुलाब हो जाऊं । अब अगर वह बन गुलाब है तो बटन गुलाब है, सबसे बड़ा गुलाब हो नहीं सकता; लेकिन सबसे बड़े गुलाब होने की जद्दो जहद में बड़ी चिंता खड़ी होगी, रात तनाव रहेगा, नींद न आयेगी, दिनभर उदास रहेगा, गणित बिठायेगाः कैसे बड़ा हो जाऊं ! और डर यह है कि इस सब चिंता में जो ऊर्जा नष्ट होगी उससे वह वह भी न हो पायेगा जो हो सकता था। मनुष्य की तकलीफ यही है — होनी नहीं चाहिए थी । बुद्धि का अगर सदुपयोग हो तो तुम्हें सहयोग देगी, लेकिन दुरुपयोग हो रहा है। तुम जैन घर में पैदा हो गये अब तुम्हारी बुद्धि कहती है, तुम जैन हो। और तुम्हारी आंखें अगर आंसुओं से भरी हैं तो बड़ी कठिनाई होगी। महावीर के मंदिर में आंसुओं के लिए जगह नहीं है । उस मंदिर में आंसू पाप हैं, वर्जित हैं। तब तुम्हें कृष्ण का कोई मंदिर खोजना पड़े, जहां रोने की छुट्टी है; छुट्टी ही नहीं, जहां रोना साधन है। और शीत, यहां सब चीजें संतुलित हैं। दो पैर हैं, दो पंख हैं, ताकि संतुलन बना रहे। तो अगर तुम किसी भक्ति मार्गी के घर में पैदा हो गये और बचपन से ही तुमने नारद के सूत्र सुने कि भक्त भाव-विह्वल हो जाता है, रोमांचित हो जाता है, आंखें आंसुओं से भर जाती हैं, रोता है, उसके गीत गाता है, नाचता है, मदमस्त होता है, मतवाला हो जाता है अगर तुमने ये सुने और तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं आते, तुम क्या करोगे ? तुम जबर्दस्ती करोगे। तुमने बुद्धि का सदुपयोग न किया। अपने को देखो! तुम्हीं महत्वपूर्ण हो; न नारद न महावीर, न मैं न कोई और। तुम्हीं महत्वपूर्ण हो, क्योंकि तुम्हीं तुम्हारे गंतव्य हो । उपयोग कर लो जिसका उपयोग करना हो; लेकिन सदा ध्यान रखना, तुम्हारे स्वभाव के अनुकूल उपयोग हो, तो तुम पहुंचोगे, नहीं तो भटक जाओगे। 'तेरी यारी में बिहारी सुख न पायो री !' Jain Education International बिहारी ने बड़े सुख में कहा है यह । तेरी यारी में बिहारी सुख न पायो री ! बड़े प्रेम में कहा है। यह उलाहना नहीं है, शिकायत नहीं है। यह प्रेमियों का खेल है, यह प्रेमियों की क्रीड़ा है। भक्त भगवान से कहता है कि तेरे प्रेम में कुछ सुख न मिला। भगवान ही भक्त के साथ थोड़े ही खेलता है, भक्त भी खेलता है! भगवान ही थोड़े ही मजाक करता है भक्त के साथ, भक्त भी करता है। जहां अपनापा वहां मजाक भी चलती है। बिहारी कोई शिकायत नहीं कर रहे हैं। एक पहेली दे रहे हैं परमात्मा को कि सुनो जी ! खूब उलझाया ! मगर तुम्हारे प्रेम में कुछ सुख न पाया ! लेकिन यह कोई दुख से निकली आवाज नहीं है । इस शब्द में पगे प्रेम को देखते हो ! तेरी यारी में बिहारी सुख न पायो री ! बड़े सुख में पगे शब्द हैं। | अब अगर तुम किसी भक्ति मार्गी के घर में पैदा हो गये, कृष्ण-मार्गी के घर में पैदा हो गये और तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं हैं— नहीं हैं तो तुम क्या करोगे ? परमात्मा ने तुम्हें वैसा नहीं चाहा। सभी रोनेवाले नहीं चाहिए, कुछ हंसनेवाले भी चाहिए। सभी समर्पणवाले नहीं चाहिए, कुछ संकल्पवाले भी चाहिए। | जीवन में विरोधों का संतुलन है। जितने यहां समर्पणवाले लोग हैं उतने ही यहां संकल्पवाले लोग हैं। जीवन संतुलन से चलता है। रात और दिन, अंधेरा और प्रकाश, . जीवन और मृत्यु, ग्रीष्म नहीं, उसकी याद में मिला दुख भी सुख है। उसकी राह पर मिले कांटे भी फूल हैं। उसके मार्ग पर मर भी जाना पड़े तो जीवन है। और उसके बिना जीवन भी मिले तो निरर्थक। उसके बिना फूल ही फूल मिलें और कांटे भी न हों तो उनसे मरण-शैय्या ही बनेगी। वे तुम्हारी कब्र पर चढ़ाये गये फूल सिद्ध होंगे। उसके मार्ग पर जो मिल जाये वही सुख है - दुख भी मिलें तो भी। उसके मार्ग पर जा रहे हैं ! तुमने कभी किसी प्रेमी को अपनी प्रेयसी की तरफ जाते देखा ! For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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