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________________ - जिन सूत्र भागः1 HRITHIY छोटे बच्चे को दस रुपये का नोट और एक पैसा, दोनों बताओ, सम्हालकर रखते हैं। वह पैसा चुन लेगा। अभी पैसे तक ही उसकी मान्यता है, दस तुम्हारी भी मान्यताएं ऐसी ही हैं। लेकिन सदियों तक जो हम रुपये का नोट वह जानता ही नहीं। मानते हैं वह संस्कार हो जाता है। मैंने सुना है, अमरीका के एक समुद्र तट पर एक आदमी था, इसलिए महावीर कहते हैं, लोग जानते भी मालूम पड़ते हैं, बूढ़ा हो गया था और लोग उसके सामने रुपये लाते, पैसे लाते, फिर भी अनजाने की तरह व्यवहार करते हैं, क्योंकि जानना लेकिन वह हमेशा पैसे चुन लेता। कभी-कभी सौ-सौ डालर का ऊपर-ऊपर है। गहरे में वासना पड़ी है, विषय-भोग की नोट उसके सामने रखते, कहते, चुन लो जो भी चुन लो दो हाथों आकांक्षा पड़ी है, जीवेषणा पड़ी है। में से। वह पैसे चुन लेता। ऐसा वर्षों से हो रहा था। और जो भी विचार करता है, चिंतन करता है, जानता मालूम होता है, फिर आते समुद्र-तट पर, यह प्रयोग करते, और हंसते हुए जाते। एक भी विरक्त नहीं होता। ऐसे विचार का क्या अर्थ जो विराग न ले दिन एक आदमी ने उससे पूछा कि कोई बीस साल से मैं तुम्हें आए! विचार की यह कसौटी है महावीर के लिए कि जिससे देख रहा हूं, तुम्हें अब तक अकल नहीं आई? जब लोग तुम्हारे वैराग्य पैदा हो, वही विचार। यह उनका मापदंड है। इसी पर वे सामने सौ डालर का नोट करते हैं और पैसे करते हैं, तुम पैसे चुन कसते हैं। वे कहते हैं, जिससे वैराग्य आ जाए, वही विचार। लेते हो। उसने कहा, अकल तो मुझे भी है। लेकिन जिस दिन | जिससे वैराग्य न आए, उसे क्या विचार कहना! वही तो भी मैंने नोट चुना, खेल बंद हुआ! यह खेल चल रहा है। पैसे | अविचार है। पतंजलि भी यही कहते हैं, विवेक वही जिससे चुन-चुनकर मैंने हजारों डालर चुन लिये धीरे-धीरे। कोई मैं वैराग्य आ जाए। विचार वही जिससे वैराग्य आ जाए। फल से मूर्ख, कोई पागल नहीं हूं। लेकिन उनको मजा आता है समझकर ही तो वृक्ष जाना जाता है-आम लगे तो आम, नीम के कड़वे कि मैं पागल हूं, इसी बहाने वे पैसे मेरे सामने लाते हैं। फल लग जाएं तो नीम। वृक्ष से थोड़े ही वृक्ष जाना जाता है, फल छोटा बच्चा पैसा चुन लेगा। पैसे का उसके लिए मूल्य है। से जाना जाता है! वैराग्य फल है विचार का। यह आदमी भी पैसा चुन रहा है, क्योंकि जानता है, जिस दिन | तो तुम विचारवान हो या नहीं, तुम्हारे जीवन के वैराग्य से पता इसने नोट चुना उसी दिन खेल बंद हुआ, फिर कोई नहीं लाएगा। चलेगा। तुम लाख बैठकर ऊहापोह करते हो। तुम्हारे सिर में चुन तो यह भी नोट ही रहा है, लेकिन तुमसे ज्यादा चालाक है। बड़ी दौड़-धूप मचती है विचारों की। तुम बड़े शास्त्र लिख तुम समझे कि यह नासमझ, बुद्ध है। तुम मजा ले रहे हो इसके सकते हो। इससे कुछ हल न होगा। असली प्रमाण यह होगा बुद्धूपन में, यह तुम्हारे बुद्धपन में मजा ले रहा है। कि तुम्हारे जीवन में वैराग्य फला, वैराग्य के फल लगे, वैराग्य मान्यताएं हैं। जो हम मान लेते हैं सुंदर, वह सुंदर हो जाता है। के मीठे फल आए? तुमने वैराग्य की फसल काटी? चीजों की जो हम मान लेते हैं कुरूप, वह करूप हो जाता है। जो हम मान व्यर्थता तुम्हें दिखायी पड़ी? तुम्हारा ज्ञान वासना से गहरा लेते हैं मूल्यवान, वह मूल्यवान हो जाता है। गया? इतना गहरा गया कि वासना उठनी असंभव हो गयी? अफ्रीका में हड्डियों का आभूषण बनाते हैं, तो मूल्यवान है। नहीं कि तुम्हें नियंत्रण करना पड़ा। नियंत्रण तो सब थोथे हैं। एक युवक संन्यासी हिमालय से वापस लौटा और एक माला अनुशासन तो सब ऊपरी हैं। बोध, इतना गहरा बोध कि बोध ही ले आया, किसी तिब्बतन लामा ने उसे दे दी। उसने मेरे हाथ में | मुक्ति बन जाए, तो वैराग्य! रखी, मैंने कहा, 'पागल! तू यह कहां से उठा लाया?' वह तो तो अब तुम सोचना कि विचार करने का अर्थ, तार्किक विचार किसी जानवर के दांतों की बनी माला थी, बड़ी गंदी और बेहूदी करना नहीं है। विचार करने का अर्थ, सम्यक विचारणा है। थी। पर उसने कहा, एक तिब्बती लामा ने मुझे दी है और उसने विचार करने का अर्थ है, सत्य जैसा है वैसा ही जानने की कहा कि यह बड़ी बहुमूल्य है। तिब्बत में माना जाता है कि बड़ी क्षमता। बहुमूल्य है। हड्डी की माला, हड्डी के गुरिये बना लेते हैं, उनकी वासना और विचार के फर्क को समझो। वासना प्रक्षेपण है। माला। तुम्हें कोई हाथ में देगा तो तुम हाथ धोओगे, तिब्बती उसे तुम जो चाहते हो वही तुम प्रक्षेपण कर लेते हो। तुम वह नहीं 50 Main Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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