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________________ 1 हला प्रश्न : क्या यह आरोप सही है कि महावीर व्याख्या में कहीं भूल हो गई। तुम्हारा भाष्य भ्रांत है। और बुद्ध, यह कहकर कि जीवन दुख ही दुख है, महावीर को तो देखो, विपन्न दिखाई पड़ते हैं? और संपन्नता भारत और एशिया के जीवन को सदियों-सदियों क्या होगी? महावीर से ज्यादा सुंदर महिमा-मंडित परमात्मा की के लिए विपन्न और दुखी बना गए? और क्या यह जीवन | कोई और छवि देखी है? महावीर से ज्यादा आलोकित, अस्वीकार की दृष्टि स्वस्थ अध्यात्म कही जा सकती है? विभामय और कोई विभूति देखी? कहीं और देखा है ऐसा ऐश्वर्य, जैसा महावीर में प्रगट हुआ? जैसी मस्ती और जैसा पहली बात, न तो कोई तुम्हें आनंदित कर सकता है, न कोई आनंद, और जैसा संगीत इस आदमी के पास बजा, कहीं और तुम्हें विपन्न कर सकता है। जो भी तुम होते हो, तुम्हारा ही निर्णय सुना है? कृष्ण को तो बांसुरी लेनी पड़ती है तब बजता है है। बहाने तुम कोई भी खोज लो।। संगीत; महावीर के पास बिना बांसुरी के बजा है। मीरा को तो ___ महावीर ने कहा, जीवन व्यर्थ है। कहा, ताकि तुम महाजीवन नाचना पड़ता है, तब बजता है संगीत; महावीर के पास बिना में जाग सको। तुमने अगर गलत पकड़ा और तुमने इस जीवन नाचे नचा है। कोई सहारा न लिया-वीणा का भी नहीं, नृत्य को भी छोड़ दिया-और नीचे गिर गए, महाजीवन में न उठे। का भी नहीं, बांसुरी का भी नहीं। कृष्ण तो सुंदर लगते एक जगह तुम खड़े थे सीढ़ी पर और महावीर ने कहा, छोड़ो इसे, हैं—मोर-मुकुट बांधे हैं। महावीर के पास तो सौंदर्य के लिए आगे बढ़ो। छोड़ा तो तुमने जरूर, लेकिन पीछे हट गए। कसूर कोई भी सहारा नहीं-बेसहारे, निरालंब! लेकिन कहीं और तुम्हारी समझ का है। | देखा है परमात्मा का ऐसा आविष्कार-जीवन की ऐसी जीवन में सदा ही उत्तरदायित्व हमारा है। दूसरों पर टालने की प्रगाढ़ता, ऐसा घना आनंद! तो महावीर जीवन के विपरीत तो आदत छोड़ो। महावीर ने कहा था, ताकि तुम महाजीवन की नहीं हो सकते। नहीं तो सूख जाते, जैसे जैन मुनि सुखे हैं। तरफ उठो। जीवन की निंदा की थी, किसी परम जीवन की जीवन के विपरीत तो नहीं हो सकते; नहीं तो कुरूप हो जाते, प्रशंसा के लिए। | जैसे जैन मुनि हो गए हैं। सिकुड़ जाते। जीवन को छोड़ा है, इस जीवन को जिसे तुम जीवन कहते हो, जीवन कहने जैसा लेकिन सिकुड़े नहीं हैं। मृत्यु को वरण किया है, महामृत्यु को क्या है? इसमें संपन्न होकर भी क्या मिलेगा? यह मिल भी वरण किया है लेकिन मरे नहीं हैं। मृत्यु उन्हें और निखार दे। जाए तो कुछ मिलता नहीं; खो भी जाए तो कुछ खोता नहीं। गई। मृत्यु को स्वीकार करके उनका जीवन और भी संपन्न हुआ स्वप्नवत है। स्वप्न से जागने को कहा था। तुम स्वप्न से जागे है, और भी गहन धन की वर्षा हुई है। तो नहीं, और महातंद्रा में खो गए। तुम्हारे दृष्टिकोण में, तुम्हारी तुम मृत्यु से डरे-डरे जीते हो। महावीर को वह डर भी न रहा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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