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________________ 268 जिन सूत्र भाग: 1 यही भगवान का रूप है तो कृष्ण में तुमको लगेगा, कुछ गड़बड़ हो रही है। यह नाच कैसा ? परम वीतराग पुरुष कहीं नाचता है? यह बांसुरी कैसी? क्योंकि सब बांसुरी तो राग है। सब रास राग है। यह आसपास खड़ी हुई सुंदर स्त्रियां, नाचतीं, डोलतीं, यह सब क्या हो रहा है? यह तो संसार है। तुम्हारी परिभाषा पर निर्भर है। और मैं धार्मिक व्यक्ति उसको कहता हूं, जिसकी परमात्मा की कोई परिभाषा नहीं; जो परमात्मा को अपरिभाष्य मानता है, अनिर्वचनीय मानता है । और जिस रूप में भी परमात्मा प्रगट होता है, पहचान लेता है, खोज लेता है; क्योंकि रूप तो सब उसी के हैं। इसलिए धोखे का कोई उपाय नहीं है। तामीरे - कायनात को गहरी नज़र से देख वह जर्रा कौन-सा है यहां जो अहम् नहीं । जरा गहरी नजर से देखो सृष्टि को ! यहां कण-कण महत्वपूर्ण है! उसकी महिमा से आपूरित है ! उसकी ही विभूति है, उसका ही प्रसाद है। लेकिन तुम्हारा जितना बड़ा प्याला होगा, उतनी ही तुम क्षमता जुटा पाओगे परमात्मा के प्रसाद की । इसलिए छोटी-छोटी परिभाषाओं के प्याले लेकर मत चलो। जब प्याला ही लेना है तो बड़ा लो कि सागर समा जायें। नहीं तो आज नहीं | कल, तुम पाओगे कि तुम्हारे प्याले में बड़ा थोड़ा है। और थोड़ा तुम्हें कष्ट देगा। और कष्ट तुम्हारे प्याले के कारण हो रहा है। तुमने प्याला बड़ा चुना होता तो परमात्मा बड़े प्याले में भी उतरने को राजी था । अनिर्वचनीय को पकड़ो! अव्याख्य की व्याख्या मत करो । अव्याख्य को अव्याख्य रहने दो। नाम-रूप मत धरो उसके । तो फिर जिस रूप में भी आयेगा, तुम पहचान लोगे। तुम हर रूप में पहचान लोगे। तुम रावण में भी देख लोगे, राम में तो देख ही लोगे। वह भी उसी का रूप है; विपरीत चला गया, गलत हो गया, बेस्वाद हो गया— लेकिन उसी का स्वाद है। साकिए - दौरा से शिकवा बेश-कम का है फिजूल जर्फ जितना उसने देखा उतनी पैमाने में है। साकिए-दौरां से शिकवा बेश-कम का है फिजूल - साकी से कम-ज्यादा की शिकायत करनी व्यर्थ है। जर्फ जितना उसने | देखा, उतनी पैमाने में है। उसने देखा, कितनी तुम पचा सकोगे, उतनी तुम्हारे पैमाने में है । Jain Education International बड़ी करो परिभाषा ! मेरी मानो तो परिभाषा को छोड़ो, इतनी बड़ी करो कि परिभाषा बचे न। तो तुम्हारा जर्फ बड़ा होगा, तुम्हारी क्षमता और पात्रता बड़ी होगी। तब मैं ही तुम्हें भगवान नहीं, तुम भी, तुम्हारा बेटा भी, तुम्हारी पत्नी भी - सभी तुम्हें भगवान दिखाई पड़ने लगेंगे। कोई बीजरूप है, कोई वृक्षरूप हुआ, कोई कली बना, कोई फूल बना। और फूलों की हजारों-हजारों किस्में हैं; ऐसे ही परमात्मा के हजार-हजार रूप हैं। फिर जो मुझे भगवान कहते हैं, वे केवल अपना प्रेम प्रदर्शित करते हैं। जिससे प्रेम हो जाये, वहीं भगवान दिखाई पड़ना शुरू हो जाता है। वह प्रेम ही क्या जिसमें भगवान दिखाई न पड़े? तुम मेरी तो छोड़ो, तुम अगर किसी स्त्री के प्रेम में पड़ गये तो वहां भी दिव्यता की झलक दिखाई पड़ेगी। तुम अगर किसी पुरुष के प्रेम में पड़ गये तो वहां भी अचानक पुरुष-भाव खो जायेगा, परमात्म-भाव प्रगट होगा। शबाब आया, किसी बुत पर फिदा होने का वक्त आया मेरी दुनिया में बंदे के खुदा होने का वक्त आया। जब कोई जवान होता है, शबाब आया, जवानी आई, किसी बुत पर फिदा होने का वक्त आया ! अब किसी प्रतिमा पर पागल हो जाने का समय आ गया। मेरी दुनिया में बंदे के खुदा होने का वक्त आया। अब कोई बंदा खुदा जैसा दिखाई पड़ेगा। यह तो साधारण प्रेम में हो जाता है। यह तो मजनू को लैला में दिखाई पड़ने लगता है। यह तो शीरी को फरिहाद में दिखाई पड़ जाता है। तो आत्मिक प्रेम में तो घटना और भी गहरी घटती है । अब जिनका मुझसे प्रेम है, उन्हें भगवान दिखाई पड़ जायेगा । तुम्हारा हो या न हो, मेरा तुमसे है; मुझे तुम में दिखाई पड़ता है। अगर तुम्हें न दिखाई पड़े तो तुम व्यर्थ ही वंचित रह जाओगे । और ध्यान रखना, अगर मैं तुमसे कहूं कि परमात्मा मुझ में है और किसी में नहीं, तो खतरनाक बात कह रहा हूं। तुम भी यही सुनना चाहते हो, क्योंकि फिर तुम्हारा अहंकार मजे से रस ले सकेगा। लेकिन मैं कहता हूं, परमात्मा सबकी सामान्यता है। परमात्मा कोई विशेष बात नहीं है, कोई विशिष्टता नहीं है। परमात्मा सभी के होने का ढंग है, सभी का स्वभाव है। जानो न जानो, तुम परमात्मा हो, जब तक न जानोगे, बंद रहोगे; जिस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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