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________________ जिन सूत्र भाग: 1MBSITORRENT लगाओगे तो ही लगेगा; रत्तीभर भी बचाया तो चूक जाओगे।। है कि तुम्हारे और उसके बीच स्थान नहीं है, जगह नहीं है। क्योंकि उस बचाने में ही अश्रद्धा आ गई। उस बचाने में ही इसलिए भी चूकना होता रहता है। जब तुम इतने शांत हो चालाकी आ गई, भोलापन खो गया। प्रार्थना तो निर्दोष भाव जाओगे, जब तुम इतने थिर हो जाओगे, जब तुम्हारे जीवन की है। पूरा का पूरा कोई अपने को रख देता है, जरा भी बचाता| लौ अकंप हो जायेगी, तभी तुम देख पाओगे, जो निकट से भी नहीं। यह नहीं सोचता कि ऐसे कहीं ऐसा न हो कि दांव खतम हो | निकट है। जाये, नाहक, थोड़ा तो बचा लूं! मुहम्मद ने कहा है कि गर्दन में जो प्राण को प्रवाहित करनेवाली इसलिए मैं कहता हूं: प्रार्थना जुआरी कर सकता है, दुकानदार नाड़ी है, जिसके काट देने से आदमी मर जाता है। वह भी दूर है। नहीं। दुकानदार तो सोच-समझकर चलता है, 'इतना | परमात्मा उससे भी ज्यादा पास है। लेकिन इतने पास को जानने लगाऊंगा, कितना मिलेगा? अगर खोया भी तो बहुत ज्यादा तो के लिए तुम्हें भी पास आना पड़ेगा। तुम अपने से बहुत दूर न खो जायेगा? इतना खोये कि जिसकी पूर्ति हो सके।' निकल गये हो। तुम्हारी वासनाएं जहां हैं, वहीं तुम हो। वासनाएं जुआरी सब दांव पर लगा देता है, कुछ बचाता नहीं। उतना | तुम्हारी बड़ी दूर भविष्य में फैली हैं। तुम पास आते ही नहीं। साहस चाहिए और जुआरी तो वस्तुएं दांव पर लगाता है, निर्वासना जब पैदा होती है, तो प्रार्थना पैदा होती है। तुम अपने धन-पैसा दांव पर लगाता है; भक्त, प्रार्थी, अपने को दांव पर पास आ जाते हो। पास जैसे-जैसे आने लगते हो, उसकी धुन लगाता है। क्योंकि परमात्मा को पाना हो तो स्वयं को ही दांव पर | बजने लगती है। जैसे-जैसे पास आते हो, उसकी सुगंध आने लगाना पड़ेगा। स्वयं की कीमत पर ही मिलता है। | लगती है। जैसे-जैसे पास आते हो, उसका कलकल-नाद तो पहली बात, तुम्हारी प्रार्थना झूठी है, मिथ्या है। तुम्हारी पूजा सुनाई पड़ने लगता है, अनाहत सुनाई पड़ने लगता है। फिर तो औपचारिक है; लोक-व्यवहार है, पूजा नहीं है। दूसरी बात, | तुम नाचने लगते हो। फिर तुम चलते नहीं। फिर नाचकर दौड़ते तुम परमात्मा को चाहते हो या परमात्मा के नाम पर कुछ और हो घर की तरफ। फिर तो तुम्हारे जीवन में घूघर बंध जाते हैं गीत चाहते हो? प्रार्थना तुम्हारी झूठी है, परमात्मा भी तुम्हारा अंतिम बंध जाते हैं। फिर तो तुम मस्ती में तरोबोर हो जाते हो। गंतव्य नहीं है। लोग परमात्मा को चाहते हैं कि चलो, उसकी लेकिन अपने पास आओ। परमात्मा के पास आने का एक ही प्रार्थना से धन मिलेगा, पद मिलेगा, प्रतिष्ठा मिलेगी, तो वस्तुतः उपाय है। अपने पास आओ! परमात्मा कोई दूसरा नहीं है, तो पद, प्रतिष्ठा और धन चाहते हैं; परमात्मा का तो साधन की तुम्हारा ही परम अस्तित्व है, तुम्हारी नियति है। तुम अगर बीज तरह उपयोग कर लेना चाहते हैं। वे तो परमात्मा को भी चाकर हो तो परमात्मा वृक्ष है। तुम अगर कली हो तो वह फूल है। वह की तरह अपने काम में लगा लेना चाहते हैं। लेकिन उनका तुम्हारा ही पूरा-पूरा खिलाव है। पास आओ। करीब आओ। असली लक्ष्य और है। अगर शैतान उन्हें धन दे, तो वे शैतान की अपने में थिर बनो। पूजा करेंगे। जो उन्हें धन दे, उसकी पूजा करेंगे। जो उन्हें पद दे, मैं सुन रहा हूं तेरे दिल की धड़कनें पैहम उसकी पूजा करेंगे। जो उन्हें पद दे, वही उनका परमात्मा हो है तेरा दिल मुतजस्सिस कहीं जरूर मेरा। जायेगा। परमात्मा गौण है, कुछ और मूल्यवान है, कुछ और मैं अपने हृदय में भी तेरे ही दिल की धड़कनें सुन रहा हूं। मैं पाने की तलाश है। सुन रहा हूं तेरे दिल की धड़कनें पैहम-लगातार, सतत, तो तुम परमात्मा को साधन नहीं बना सकते हो; बनाओगे तो अनवरत! इस दिल की धड़कन में भी उसकी ही धड़कन है। चूक जाओगे। परमात्मा परम साध्य है। अपने को तुम उसका सुननेवाला चाहिए। तुम्हारे कान इतनी व्यर्थ की आवाजों से भरे साधन बना लो, फिर मिलने में देर न होगी। हैं कि तुम्हें अपने दिल की धड़कन सुनाई ही नहीं पड़ती। तीसरी बात, परमात्मा बहुत निकट है, निकट से भी निकट है। पश्चिम के एक विचारक ने अपनी डायरी में लिखा है-बड़ा निकट कहना भी गलत है, क्योंकि निकट में भी थोड़ी दूरी आ संगीतज्ञ है कि अमरीका में एक प्रयोगशाला में वह गया। जाती है। परमात्मा तुम्हारे रोएं-रोएं में समाया है। वह इतने पास गया था कुछ कारण से। उसे खबर मिली थी कि वहां एक 260/ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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