SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - अध्यात्म प्रक्रिया है जागरण की दिन संयोग की बात, दोनों स्त्रियां साथ मिल गईं और दोनों को सार क्या! अगर जंगल में जाकर राजा हो गये, जहां कोई आदमी शक तो था ही। उन्होंने नसरुद्दीन से पूछा, 'अब कहो कि कौन नहीं, तो जंगली जानवरों के बीच राजा होने का सार क्या! इससे स्त्री दुनिया में सबसे ज्यादा सुंदर है?' तो डिप्टी कलेक्टर होना अच्छा, पुलिस इंसपेक्टर होना अच्छा, नसरुद्दीन थोड़ा झिझका। उसने कहा कि तुम एक-दूसरे से | पटवारी होना अच्छा लेकिन कम से कम अपने गांव में! जहां ज्यादा सुंदर हो! कोई जानता है, पहचानता है, वहीं अकड़ का मजा होता है। एक-दूसरे से ज्यादा सुंदर! आदमी तरकीब निकाल ही लेता उन्हीं के सामने तो हम सदा सिद्ध करना चाहते हैं कि देखो, तुम है। लेकिन हम झूठ बोलते चले जाते हैं। जाल उलझता चला वहीं के वहीं रह गये, हम कहां पहुंच गये, जिनके साथ हमने जाता है। धीरे-धीरे तो बहुत बार झूठ बोलकर ऐसी हालत आ | यात्रा शुरू की थी! अब अर्जुन इन्हीं के साथ बड़ा हुआ, यही जाती है कि हमें भी लगता है कि शायद यही सच होगा; क्योंकि भाई-बंधु, इन्हीं के साथ जिंदगी का दांव था, इन्हीं के साथ सारी इतने दिन से बोल रहे हैं, याद भी नहीं आती कि कब शुरू किया स्पर्धा थी बचपन से लेकर अब तक, यही सब खतम हो था। बहुत बार बोलने से, बहुत बार पुनरुक्त होने से झूठ स्वयं जायेंगे-फिर सिंहासन पर भी बैठ जाओगे, तो आसपास गिद्ध को भी सच जैसा मालूम पड़ने लगता है। तब तुम अऋजु हो बैठे होंगे, सियार आवाज कर रहे होंगे और अजनबी साधरण-से गये। तब तुम अर्जुन हो गये-अऋजु! लोग होंगे जिनसे तुम्हारी कोई झंझट ही न थी, कोई प्रतिस्पर्धा न कृष्ण की पूरी चेष्टा गीता में, इरछे-तिरछे अर्जुन को सीधा थी, जिनका होना न होना बराबर होगा। तो अर्जुन के मन में उठी करने की है। नाम 'अर्जुन' का बड़ा सार्थक है। कृष्ण की पूरी तो है असल में अहंकार की बड़ी गहरी पकड़, बड़ा मोह। इन्हीं चेष्टा यही है कि तू सीधा-साफ हो; क्षत्रिय है, क्षत्रिय की बात के सामने तो सिद्ध करने का मजा है। दुर्योधन रहे, और हम बोल। अचानक, यह अर्जुन कभी भी अहिंसा की बात नहीं जीतें। भीष्म पितामह रहें, और देखें कि अर्जुन सिंहासन पर है। बोला था, आज अचानक अहिंसा बोलने लगा। और अहिंसा और ये सारे कर्ण, और ये सारे संबंधी पराजित खड़े हों, तो ही इसकी सच्ची नहीं है। क्योंकि अगर ये इसके प्रियजन न होते, मजा है। नहीं तो मजा क्या है? उठा तो यह था, लेकिन बात संबंधी न होते, भाई-भतीजे, गुरु, पितामह, चचेरे, सब तरह के, | उसने दसरी की। उसने कहा कि मैं मारना नहीं चाहता, हिंसा तं मौसी, मामा के रिश्तेदार, सब इकट्ठे थे—अगर ये इसके अपने बड़ा पाप है! आज तक हिंसा ही करता रहा, मांसाहारी; आज न होते, अपनों को देखकर यह जरा डरा। इसने कहा कि यह तो अचानक अहिंसक हो गया! कृष्ण को धोखा देना संभव न था। सब अपनों को ही मार डालूंगा। | वे अर्जन को खींच-खींचकर सीधा करने लगे। अब यह थोड़ा सोचने जैसा है। अर्जन को सवाल उठा कि | गीता पूरी की पूरी अर्जुन को ऋजु बनाने की चेष्टा है। वे आदमी धन भी कमाता है, पद भी कमाता है, सिंहासन पर भी| उसको पकड़-पकड़कर सीधा कर रहे हैं कि जरा अकल ला, बैठता है, तो मजा तो तभी आता है जब अपने देखने को मौजद वापिस लौट, कहां की बातें कर रहा है? संन्यास तुझे सोहता हों। तुम अगर दूसरे किसी गांव में जहां तुम्हें कोई भी नहीं नहीं। यह तेरे भीतर की बात नहीं। अन्यथा इतने दिन तक कौन जानता, सम्मानित भी हो जाओ तो तुम्हें वह मजा न आएगा जो तुझे रोकता था संन्यास लेने से? आज अचानक युद्ध के मैदान अपने गांव में सम्मानित होकर आयेगा। दूसरे गांव में जहां कोई | पर संन्यास की भाषा उठने लगी है। इस संन्यास में कहीं कुछ जानता ही नहीं, वहां सम्मानित भी हो गये तो क्या खाक | और छिपा है। सम्मान! तुम्हारी इच्छा उस दूसरे गांव में यह होगी कि अपने तुम अपने भीतर ऋजुता को खोजना। जब भी तुम कुछ कहो नाये कि कैसा सम्मान मिल रहा है, कैसी तो जरा गौर से देखना, तुम यही कहना चाहते हो? यही तुम्हारी प्रतिष्ठा मिल रही है! अगर तुम्हें ऐसा कुछ हो कि तुम दुनिया के गहनतम आकांक्षा है या इससे विपरीत? तो जो सीधा-साफ हो, सम्राट हो जाओगे, लेकिन तुम्हें जाननेवाले सब मर जायेंगे, तो उसी को धीरे-धीरे साधना। तुम भी अर्जुन की हालत में खड़े हो जाओगे। तुम भी सोचोगे, | ऋजुता से जटिलता कट जाती है, माया हार जाती है। संतोष 245 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy