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________________ ३७९ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ओरालियवेगुम्विय आहारयतेजणामकम्मदए । चउणोकम्मसरीरा कम्मेव य होदि कम्मइयं ॥२४४॥ औदारिकवैक्रियिकाहारक तैजसनामकर्मोदये। चतुर्नोकर्मशरीराणि कर्मैव च भवति कार्मणं ॥ ___औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसशरीरनामकर्मोदयमागुत्तिरलु यथासंख्यं औदारिकवैक्रि- ५ यिकाहारकतैजसंगळ्नाल्कु नोकर्मशरीरंगळप्पवु । अकर्मशरीराणि ईषत्कम्मंशरीराणीति वा नो कर्मशरीराणि एंदितु नो शब्दके विवक्षितकर्मविपर्यायदोळं इषदादोळं वृत्तिसंभवं नो इंद्रियादिगेतरियल्पडुगुं। कर्मशरीरके तंते आत्मगुणघातित्वगत्यादिपारतंत्र्यहेतुत्वभादिदं कर्मविपर्य्ययत्वमुं कम्मंशरीरसहकारित्वदिदमोषत्कर्मशरीरत्वमुदितु नोकर्मशरीरत्वं युक्तमक्कुं। कम्व कर्मणि भवं वा कार्मणमेदितु कार्मणशरीरनामकर्मक्कुदयमागुत्तिरलु कार्मणशरीर- १० मक्कु । मेके दोड ज्ञानावरणाद्यष्टविधकार्मणस्कंधसमूहवल्लदन्यकार्मणशरीरक्के परमागमदोळ् पेळ्केयिल्लप्पुरदं। अनंतरमौदारिकादिशरीरंगळगे समयप्रबद्धादिसंख्येयं गाथाद्वर्याददं पेळ्दपं । परमाणूहि अणंतहि वग्गणसण्णा हु होदि एक्का हु। ताहि अणंतहि णियमा समयपबद्धो हवे एक्को ॥२४५॥ परमाणुभिरनंतैर्ध्वर्गणासंज्ञा खलु भवत्येका खलु ।ताभिरनंतैन्नियमात्समयप्रबद्धो भवेदेकः॥ औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसशरीरनामकर्मोदये सति यथासंख्यं औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसनामानि चत्वारि नोकर्मशरीराणि भवन्ति । नोशब्दस्य विपर्यये ईषदर्थे च वृत्तः । तेषां शरीराणां कर्मवदात्मगुणपातित्वगत्यादिपारतन्त्र्यहेतुत्वाभावेन कर्मविपर्ययत्वात् कर्मसहकारित्वेन ईषत्कर्मत्वाच्च नोकर्मशरीरत्वसंभवात् । कर्मव कार्मणशरीरनामकर्मोदयसञ्जातज्ञानावरणाद्यष्टविधकार्मणस्कन्धसमूह एव कार्मणशरीरं भवति तदन्यस्य २० परमागमे कार्मणशरीरत्वेन कथनाभावात् ॥ २४४ ॥ अथौदारिकादिशरीराणां समयप्रबद्धादिसंख्यां गाथाद्वयेनाह. औदारिक, वैक्रियिक, आहारक और तैजस शरीर नाम कर्मका उदय होनेपर क्रमसे औदारिक, वैक्रियिक, आहारक और तैजस नामक चार नोकर्म शरीर होते हैं । 'नो' शब्द विपरीत अर्थमें और ईषद् अर्थमें प्रवृत्त होता है । वे शरीर कर्मकी तरह आत्माके गुणोंके २५ घाती नहीं हैं, न गति आदिकी तरह परतन्त्रताके हेतु हैं। अतः कर्मसे विपरीत होनेसे तथा कोंके सहायक होनेसे और ईषत्कर्म होनेसे शरीरोंको नोकमे कहा है। तथा कामण शरीर नामकर्मके उदयसे उत्पन्न ज्ञानावरण आदि आठ प्रकारके कार्मणस्कन्धका समूह ही कार्मण शरीर होता है। परमागममें इससे अन्य कार्मणशरीरका कथन नहीं किया है ॥२४४॥ ___आगे औदारिक आदि शरीरोंके समयप्रबद्ध आदिकी संख्या दो गाथाओंसे ३० कहते हैं १. म कर्मदुदय । २. ब सम्पादित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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