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________________ १७८ गो० जीवकाण्डे ६।८।१२ सिद्धांतवाक्यप्रमादिदं पल्यासंख्यातभागगुणितमपत्तितमिदं प३८।८। ८ १२ । १।९ नोर्ड तदधस्तनबादरवातकायापर्याप्तोत्कृष्टावगाहनमुं तदधस्तनबादरवायुकायिकपर्याप्तोत्कृष्टावगाहनादिगळे विशेषाधिकक्रममुपरितनपल्यासंख्यातभागगुणितक्रमादिदं पोगि बादर प्रतिष्ठित पर्याप्नोत्कृष्टावगाहनमधिकर्मु गुणितमुमेल्लमपत्तिसि प।२।१।९ दो राशियं नोर्ड बादरा ५ प्रतिष्ठितपर्याप्तजघन्यावगाहनं पल्यासंख्येयभागगुणितमपत्तित ५१।१।९ मिदं नोडे ६। ८ । १२ तीत्य अष्टम सक्ष्मभुकायिकपर्याप्तकोत्कृष्टावगाहनं विशेषाधिकमपतितमिदं प ' ८।८। १२ । । ९ अतः बादरवायुकायिकपर्याप्तजघन्यावगाहनं परस्थानत्वात्पल्यासंख्येयभागगुणितमपतितं६ । ८ । १२ पल्यासंख्यातगुणितमिति प। ७।८।१२।१।९ इतोऽग्रे द्वे द्वे प्राग्वत्प्रतिभागभक्तैकैकभागाधिके एक a a सप्तदशावगाहनान्यतीत्य सप्तदशं बादरपर्याप्त प्रतिष्टितोत्कृष्टावगाहनमधिकमपतितं प । २।। ९ अतः १० बादराप्रतिष्ठितप्रत्येकपर्याप्तजघन्यावगाहनं पल्यासंख्येयभागगणितमपवर्तितं प। १।। ९ अतः बादरद्वीन्द्रिय a पल्य के असंख्यातवें भागसे, बारह बार एक अधिक आवलीके असंख्यातवें भागसे और नौ बार संख्यातसे भाजित घनांगुल प्रमाण होती है। इससे बादर वायुकायिक पर्याप्तकी जघन्य अवगाहना परस्थानरूप होनेसे पल्यके असंख्यातवें भाग गुणित है। ऊपर पल्यके असंख्यातवें भागका भागहार आठ बार था। उसमें से एकका अपवर्तन करनेपर सात बार १५ रहा। इससे आगे दो-दो स्थान तो विशेष अधिक और एक-एक स्थान पल्यके असंख्यातवें - भागसे गुणित जानना । सो विशेषका प्रमाण अपनी-अपनी पूर्वराशिको आवलीके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर एक भाग प्रमाण जानना । सो यहाँ अधिक होता है । अपवर्तन करनेपर बारह बार आवलीके असंख्यातवें भागका गुणाकार और बारह बार एक अधिक आवलीके असंख्यात भागका भागहार थे। सो इनमें से एक-एक कम करना। तथा जहाँ पल्यके असंख्यातवें भागका गुणाकार हो,वहाँ अपवर्तन करनेपर सात वार पल्यके असंख्यातवें भागके भागहारमें-से एक बार कम करना चाहिए । सो बादर वायुकायिक पर्याप्तकी जघन्य अवगाहनासे बादर वायुकायिक अपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना विशेष अधिक है। उससे बादर वायुकायिक पर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना विशेष अधिक है। उससे बादर तेजस्कायिक पर्याप्तकी जघन्य अवगाहना पल्यके साका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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