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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १३५ गळ प्रथमप्रथमनिषेकंगळोळद्धिक्रममागि मुंद त्रिकोणरचनाविशेषमं माळपल्लि पळदर्पमिल्लि प्रयोजनमिल्लिप्पुरि गुणगिनिर्जराद्रव्यं पेळल्पटुदु । श्रावकादि पत्तु स्थानंगळुमसंख्यातगुणितक्रममाद प्रकारमें ते दोडे ___ गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यनिमित्तमागि पुगुवपकर्षणभागहारंगळ्गे विशुद्धिनिबंधनत्वमंटप्पुरिवं तत्तद्विशुद्धयनुगुणमागियपकर्षणभागहारंगळसंख्यातगुणहीनंगळागि पुगलसंख्यातगुणितक्रमसिद्धि- ५ यक्कुमप्पुरिदं गुणश्रेण्यायामकालंगळु मत्त तद्विपरीतंगळदेते दोडे समुद्घातजिननं मोदलागि विशुद्धमिथ्यादृष्टिगुणश्रेण्यायामकालपर्य्यतं संख्यातगुणंगळक्रमदिदं अप्पुवु। समुद्घातजिनगुणश्रेण्यायामकालमंतमहत्तमं २ १ नोडल स्वस्थानजिनगुणश्रेण्यायामकालं संख्यातगुणमितु पश्चादनुपूर्वाियदं संख्यातगुणितक्रमदिदं अल्लल्लि गुणश्रेण्यायामकालंगळयरियल्पडुवुवु ।। स ।। १२-। प । संख्यातमुणितक्रमेण गुणश्रेणिद्रव्यं दत्तं भवति । इतोऽग्रे उपरितनस्थितद्रव्यमिदं ७।४। उप a नानागुणहानिष प्रथमप्रथमनिषकेषु अधिक्रमेण अग्रे त्रिकोणरचनाविशेषः करिष्यते, अत्र प्रयोजनाभावान्न कृतः । तत्तद्गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यं श्रावकादिदशस्थानेष्वसंख्यातगुणितं कथं जातं ? इति चेत् तन्निमित्तप्रविष्टापकर्षणभागहाराणां विशुद्धिनिबन्धनत्वेन असंख्यातगुणहीनत्वात्तस्यासंख्यातगुणितक्रमप्रसिद्धेः । गुणश्रेण्यायामकाला: पुनस्तद्विपरीताः । तद्यथा-समुद्घातजिनमादिं कृत्वा विशुद्धमिथ्यादष्टिगुणश्रेण्यायामकालपर्यन्तं संख्यातगुणाः क्रमेण भवन्ति । समुद्घातजिनगुणश्रेण्यायामकालोऽन्तर्मुहूर्तः २ १, अतः स्वस्थानजिनगुणश्रेण्यायामकाल: १५ ३२ में घटाने पर शेष अठारह अन्तिम निषेकका प्रमाण होता है। इन सब ३२, ३०, २८, २६, २४, २२, २०, १८ को जोड़नेपर दो सौ सर्वद्रव्य का प्रमाण होता है। इसी तरह अर्थसंदृष्टिसे भी पूर्वोक्त यथार्थ स्वरूपको जानना। गुणश्रेणी निर्जराका द्रव्य असंख्यात लोक बहु भाग मात्र है। सो सम्यक्त्वकी उत्पत्तिके समय होनेवाले करणोंके काल सम्बन्धी गुणश्रेणी आयाम अन्तर्मुहूर्त के समयोंमें प्रति समय २० असंख्यात गुणित क्रमसे निषेक रचना की जाती है। जो इस प्रकार है-उस गणश्रेणी आयामके प्रथम समयमें जितना द्रव्य दिया,उसका प्रमाण एक शलाका है। दूसरे समयमें उससे असंख्यात गणी शलाका ४ है । इस तरह असंख्यात गुणित शलाकाके क्रमसे गणश्रेणीके अन्तिम समयमें उसके योग्य असंख्यात गुणित शलाका होती हैं। उनकी संदृष्टि ६४ है। इनमें प्रथम आदि समय सम्बन्धी सब शलाकाओंको मिलानेपर उसकी संदृष्टि ८५ है। विशेषार्थ-इस कथनको अंकसंदृष्टिसे स्पष्ट करते हैं जैसे गुणश्रेणीमें दिये हुए द्रव्यका प्रमाण छह सौ अस्सी है। गुणश्रेणी आयामका प्रमाण चार, असंख्यातका प्रमाण चार । प्रथम समय सम्बन्धी द्रव्यकी शलाका एक, दूसरे समय सम्बन्धी द्रव्यकी शलाका उससे असंख्यात गुणी ४, तीसरे समय सम्बन्धी उससे असंख्यात गुणी शलाका १६, चौथे समय सम्बन्धी उससे असंख्यात गुणी शलाका चौसठ ६४। इनका जोड़ पचासी होता है। ३० इससे सबके द्रव्य छह सौ अस्सीमें भाग देनेपर आठ आते हैं। इस आठको अपनी-अपनी शलाकासे गुणा करें। आठको एकसे गुणा करनेपर प्रथम समय सम्बन्धी निषेकका प्रमाण १. म पत्तु १४ ओ प = 2 ८५ स्था। २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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