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________________ ६४ सर्वेऽपि पूर्वभंगा उपरिमभंगेष्वेकैकेषु मिलतीति च क्रमशो गुणिते उत्पद्यते संख्या ॥ एल्ला ५ पूर्व पूर्व भंगंगळु परिमोपरिमभंगंगळोळमों वो दरोळ संभविसुगुमेदितु क्रमदिनेडिरि गुणिसुत्तिरल विशेषसंख्योत्पत्तियक्कुम दे ते दोड-पूर्व भंगगळप्प विकथाप्रमादंगळु नाल्कुमुपरितनकषाय मोदोदरो संभविसुत्तिर नाकु कषायंगळगं पदिनार प्रमादंगळप्पुवु । मिल्लियनुपात राशिक माम कषायक्के नाल्कु विकथा प्रमादंगळागुत्तं विरल नाकु कषायंगळिगनितु विकथा प्रमादंगळपूर्वेदितु । प्र । क १ । घ । वि ४ । इ । क ४ । आंद्यंतसदृशं राशिकं मध्यनामफल १० भवेर्देब न्यायदिदं प्रमाणं फलं इच्छा इच्छां फलेन संगुण्य प्रमाणेन तु भाजयेंदेंबी गणितन्यार्यावद मिच्छाराशियुमं फलराशियुमं गुणियिसि प्रमाणराशियं भागिसुत्तिरलु पदिनार विकथारूपंगळप्प मध्य नामफल मक्कुमप्पुदरिदं । २० गो० जीवकाण्डे तदनंतरं विशेषसंख्योत्पत्तिक्रमप्रदर्शनार्थमिदं पेळूदपरु । सव्वे विव्वभंगा उवरिमभंगे एकमेक्केसु | मेति त्तिय कमसो गुणिदे उप्पज्जदे संखा ||३६|| मत्तमीपधस्तनभंगंगळु पदिनारमुपरिमभंगगळप्पेंद्रियमो वो बक्के संभविसुत्तिरलुमैविव्रियंगळगे में भत्तुप्रमादविकल्पंगळक्कुमंते निद्रा सामान्यमों दे यप्रवदरोळमधस्तनभंगंगळे १५ भत्तुं संभविसुत्तिरलु प्रमाणराशियुमिच्छाराशियं निद्रयों देयप्रदं फलराशियप्पे भत्तनु मा इच्छा राशियों दुरिदं गुणियिसि प्रमाणराशियप्पो वरिदमे भागिसुत्तिरलु लब्धिमे भत्ते प्रमादंगळकुमंत प्रणयदात्त प्रमादंगळ भविसुगुमितु विशेषसंख्या मुत्पत्तिनिरूपितमाय्तु । अनंतरं प्रस्तारक्रमप्रदर्शनार्थमिदं पेदपरु | २५ भवन्ति ॥ ३५ ॥ अथ विशेषसंख्योत्पत्तिक्रममाह सर्वेऽपि पूर्वभङ्गाः उपरिमोपरिमभङ्गेषु एकैकस्मिन्मिलन्ति संभवन्तीति क्रमेण गुणिते सति विशेष संख्या समुत्पद्यते (तद्यथा) पूर्व भङ्गाः विकथाप्रमादाश्चत्वारोऽपि उपरितनकषायेष्वेकैकस्मिन् संभवन्तीति चतुः कषायाणां षोडश प्रमादा भवन्ति । पुनः एतेऽधस्तनभङ्गाः षोडशापि उपरितनेन्द्रियेष्वेकैकस्मिन् संभवन्तोति पञ्चेन्द्रियाणामशीतिप्रमादा भवन्ति । तथा निद्रायां प्रणये च एकैकत्वाद् अशीतिरशीतिरेव । एवं विशेषसंख्योत्पत्तिः कथिता जाता ||३६|| अथ प्रस्तारक्रमं प्रदर्शयति- आगे विशेष संख्याकी उत्पत्तिका क्रम कहते हैं सभी पहले के भंग ऊपर-ऊपर के भंगों में से एक-एक में मिलते हैं । इस प्रकार क्रमसे गुणा करनेपर विशेष संख्या उत्पन्न होता है । जसे, पूर्वभंग विकथा प्रमाद चारों भी ऊपरके कषाय प्रमादमें से एक-एक में होते हैं । इस तरह चारों कषायोंके सोलह प्रमाद होते हैं । फिर ये नीचेके सोलह भी भंग ऊपरके इन्द्रिय प्रमादों में से एक-एक में होते हैं । इस तरह पाँच ३० इन्द्रियोंके अस्सी प्रमाद होते हैं। तथा निद्रा और प्रणय एक-एक होनेसे अस्सी- अस्सी ही होते हैं । अर्थात् चार विकथाको चार कषायोंसे गुणनेपर सोलह प्रमाद होते हैं, इन सोलहको पाँच इन्द्रियोंसे गुणा करनेपर अस्सी होते हैं; अस्सीको एक-एकसे गुणा करने पर भी अस्सी ही होते हैं, इस प्रकार विशेष संख्याकी उत्पत्ति कही ||३६|| आगे प्रस्तारका क्रम दिखाते हैं ३५१. मनडरे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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