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________________ ५३८ ) छक्खंडागमे संतकम्म द्विदीओ तत्तियाओ चेव । जट्ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । मायासंजलणाए जाओ विदीओ ताओ असंखे० गुणाओ। जट्ठिदिसंत० विसे० । माणसंजलणाए जाओ ट्ठिदीओ ताओ विसे० । जट्ठिदिसंत० विसे० । कोधसंजलणाए जाओ द्विदीओ ताओ विसे । जट्ठिदिसंत० विसे० । पुरिसवेदस्स जाओ द्विदीओ ताओ संखे० गुणाओ। जट्ठिदिसंत० विसे० । हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं जाओ ट्ठिदीओ ताओ संखेज्जगुणाओ। जं छिदिसंतकम्मं विसेसाहियां । एवमोघजहण्णटिदिसंतकम्मदंडओ समत्तो। गदीसु वि जहण्णट्ठिदिसंतकम्मअप्पाबहुगं कायन । तं जहा- णिरयगदीए सम्मत्तस्स जहण्णट्ठिदी थोवा, एगसमयकालएगढिदित्तादो। उव्वेल्लमाणियाणं जहण्णट्ठिदी तत्तिया चेव । जट्ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । उवरि अप्पप्पणो जहण्णट्ठिदिसंतकम्मपमाणं जाणिदूण अप्पाबहुगं कायव्वं । एवं णिरयगइदंडओ समत्तो। . जहा णिरयगदीए तहा इयरासु वि गदीसु णेयव्वं । भुजगारो पदणिवखेवो वड्ढी च एदाणि तिणि अणुयोगद्दाराणि जहा ट्ठिदिसंकमे णीदाणि तहा णेयव्वाणि । एवं ट्ठिदिसंतकम्मं समत्तं । अणुभागसंतकम्मे पुव्वं गमणिज्जा आदिफद्दयपरूवणा कीरदे। तं जहा-केवलणाणावरण-केवलदसणावरण-णिद्दाणिद्दा-पयलापयला-थीणगिद्धि-णिद्दा-पयला-बारसकसायाण संख्यातगुणा है। संज्वलन मायाकी जो स्थितियां हैं वे असंख्यातगणी हैं। जस्थितिसत्कर्म विशेष अधिक है। संज्वलन मानकी जो स्थितियां हैं वे विशेष अधिक हैं। जस्थितिसत्कर्म विशेष अधिक है। संज्वलन क्रोधकी जो स्थितियां हैं वे विशेष अधिक है। जस्थितिसत्कर्म विशेष अधिक है। पुरुषवेदकी जो स्थितियां हैं वे संख्यातगुणी हैं। जस्थितिसत्कर्म विशेष अधिक हैं। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, और जुगुप्साकी जो स्थितियां हैं वे संख्यातगुणी हैं। इनका जस्थितिसत्कर्म विशेष अधिक है। इस प्रकार ओघ जघन्य स्थितिसत्कर्मदण्डक समाप्त हुआ। गतियोंमें भी जघन्य स्थितिसत्कर्मका अल्पबहुत्व करते हैं। यथा- नरकगतिमें सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति स्तोक है, क्योंकि, वह एक समय कालवाली एक स्थिति रूप है । उद्वेलित की जानेवाली प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति उतनी ही है। उनका जस्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा है। आगे अपने अपने जघन्य स्थितिसत्कर्मके प्रमाणको जानकर प्रकृत अल्पबहुत्वको करना चाहिये । इस प्रकार नरकगतिदण्डक समाप्त हुआ। जिस प्रकार नरकगतिमें अल्पबहुत्व किया गया है उपी प्रकारसे अन्य गतियोंमें भी ले जाना चाहिये । भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धि इन तीन अनुयोगद्वारोंको जैसे स्थितिसंक्रममें लिया गया है वैसे यहां भी ले जाना चाहिये। इस प्रकार स्थितिसत्कर्म समाप्त हुआ। अनुभागसत्कर्म सर्वप्रथम जतलाने योग्य आदि स्पर्धकोंकी प्ररूपणा की जाती है। यथाकेवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा, प्रचला और अप्रती 'ट्ठिदिसंकमेण ' ताप्रत 'ट्ठिदिसंतकम्मे' इति पाठः । .. Jain Education lernational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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