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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे ट्ठिदिउदीरणा ( ११३ भागेण ऊणसागरोवममेतदिदिसंतकम्मे सेसे सम्मामिच्छत्तग्गहणपाओग्गस्सुवलंभादो । जो पुण तसेसु एइंदियट्ठिदिसंतसमं सम्मामिच्छत्तं कुणइ सो पुव्वमेव सागरोवमपुधत्ते सेसे चेव तदपाओग्गो होदि ।। बारसणं कसायाणं जहण्णदिदिउदीरगो को होदि ? जो बादरेइंदियो पज्जत्तो सव्वविसुद्धो हदसमुप्पत्तियकमेण जहण्णढिदिसंतकम्मस्स हेट्ठा सव्वचिरं बंधिऊण से काले समर्शिद वा उरि वा बंधिय तदो आवलियमर गदस्स जहणिया द्विदिउदीरणा बारसण्णं कसायाणं होदि । कोधसंजलणस्स जहण्णढिदिउदीरणा कस्स होदि? खवओ वा उवसामओ वा जो कोधवेदओ से काले उदय-उदीरणाओ वोच्छिजिहिंति त्ति तस्स जहणिया डिदिउदीरणा। माणसंजलणस्स जहण्णदिदिउदीरणा कस्स? खवगो वा उवसामगो वा माणवेदओ से काले उदय-उदीरणाओ वोच्छिजिहिंति त्ति तस्स जहण्णद्विदिउदीरणा। मायासंजलणाए जहण्णद्विदिउदीरणा वि एवं चेव वत्तव्वा। लोभसंजलणस्स जहण्णटिदिउदीरओ को होदि ? समयाहियावलियचरिमसमयसकसाओ। सम्यग्मिथ्यात्वके ग्रहणकी योग्यता पायी जाती है । परन्तु जो त्रस जीवों में एकेन्द्रियके स्थितिसत्त्वके बराबर सम्यग्मिथ्यात्वके स्थितिसत्त्वको करता है वह पहिले ही सागरोपमपृथक्त्व प्रमाण स्थितिके शेष रहनेपर ही उसके ग्रहणके अयोग्य हो जाता है । बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिका उदीरक कौन होता है ? जो बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त सर्वविशुद्ध जीव हतसमुत्पत्तिक क्रमसे जघन्य स्थितिसत्त्वके नीचे सर्वचिर काल तक बांधकर अनन्तर समयमें समान स्थिति अथवा अधिक स्थितिको बांधकर उससे आगे एक आवली मात्र काल ऊपर गया है उसके बारह कषायोंकी जघन्य स्थिति उदीरणा होती है। संज्वलनक्रोधकी जघन्य स्थिति-उदीरणा किसके होती है ? जो क्षपक अथवा उपशामक क्रोधवेदक जीव अनन्तर कालमें उदय व उदीरणाकी व्युच्छित्ति करेगा उसके उसकी जघन्य स्थिति-उदीरणा होती है। संज्वलनमानकी जघन्य स्थिति-उदीरणा किसके होती है ? जो क्षपक अथवा उपशामक मानवेदक जीव अनन्तर कालमें उदय व उदीरणाकी व्युच्छित्ति करेगा उसके उसकी जघन्य स्थिति-उदीरणा होती है। इसी प्रकारसे संज्वलनमायाकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका भी कथन करना चाहिये। संज्वलनलोभकी जघन्य स्थितिका उदीरक कौन होता है ? जिसके अन्तिम समयवर्ती सकषाय रहने में एक समय अधिक आवली मात्र काल शेष रहा है वह उसकी जघन्य स्थितिका उदीरक होता है। हास्य व रति सम्बन्धी जघन्य स्थितिकी ४ प्रत्योरुभयोरेव -'पाओग्गाणुवलंभादो'इति पाठः। वारसक० जह० टिदिउदी० कस्स? अण्णद० बादरेइंदियस्स हदसमुप्पत्तियस्स जावदि सक्कं ताव संतकम्मस्स हेदा बंधिदूण समद्विदि वा बंधिदूण संतकम्म वोलेदूण वा आवलियादीदस्स । जयघ. अ. प. ७९४. * तापतौ 'उदीरया त्ति' इति पाठः । 0 चदुसंज. जह० टिदिउदीर० कस्स ? अण्णद० उवसामगस्स वा खवगस्स वा अप्पप्पणो कसाएहिं सेढिमारूढस्स समयाहियावलियउदी० तस्स जह। जयध. अ. प. ७९४. www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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