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________________ ५६० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं ( ५, ६, ७८५ पंचसरीरपाओग्गवग्गणाणं पि थोवबहत्तमभंतरवग्गणाए परविदं ति एत्थ पदेसअप्पाबहुए ण कज्जमिदि वोत्तुं ण जुत्तं, ओरालिय-वेउव्विय-आहारसरोरपाओग्गवग्गणाणं थोवबहुत्तस्स तत्थ परूवणाभावादो। पंचण्णं सरीराणमोगाहणप्पाबहुअं वेयणखेत्तविहाणे परूविदं ति एत्थ ण परूविज्जदे । किंतु पंचणं सरीराणं पाओग्गवग्गणाणमोगाहणाणं थोवबहुत्त परूवणटमोगाहणअप्पाबहुअमागयं । पदेसअप्पाबहए त्ति सव्वत्थोवाओ ओरालियसरीरदव्ववग्गणाओ पदेसट्ठदाए ॥ ७८५॥ एवमप्पाबहुअंजोगेणागच्छमाणएगसमयपबद्ध वग्गणाणं परविदं ण सव्ववग्गणाणं । कुदो एवं णव्वदे? आहारसरीरवग्गणाए वग्गणग्गेण पदेसग्गेण च तेजासरीरवग्गणादो अणंतगुणाए तत्तो अणंतगणहीणत्तविरोहादो। तेण एगेण जोगेण आगच्छमाणओरालियसरीरदब्यवग्गणाओ पदेसग्गेण वग्गणग्गेण च* थोवाओ त्ति भणिदं । आहारसरीरवग्गणाए वग्गणग्गे असंखेज्जे खंड कदे तत्थ बहुमागा आहारवग्गणाए वग्गणगं होदि, सेसे असंखेज्जे खंड कदे बहुमागा वेउब्वियसरीरपाओग्गवग्गणग्गं होवि । सेसेगभागो ओरालियपाओग्गवग्गणग्गं होदि । तेण थोववग्गणाहितो थोवाओ प्रदेश अल्पबहुत्व आया है । पाँच शरीरोंके योग्य वर्गणाओंका भो अल्पबहुत्व आभ्यन्त र वर्गणा अनुयोगद्वारमें कहा है, इसलिए यहाँ पर प्रदेश अल्पबहुत्वसे कोई प्रयोजन नहीं है ऐसा कहना योग्य नहीं है, क्योंकि, औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके योग्य वर्गणाओंके अल्पबहुत्वका वहां पर कथन नहीं किया है। पाँच शरीरों की अवगाहनाका अल्पबहुत्व वेदनाक्षेत्रविधान अनुयोगद्वारमें कहा है, इसलिए उसका यहाँ पर कथन नहीं करते हैं किन्तु पाँच शरीरोंके योग्य वर्गणाओंकी अवगाहनाओंके अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिए अवगाहना अल्पबहुत्व यहाँपर आया है । प्रदेशअल्पबहुत्व-औदारिकशरीर द्रव्यवर्गणायें प्रवेशार्थताको अपेक्षा सबसे स्तोक हैं। ७८५ । यह अल्पबहुत्व योगसे आनेवाले एक समय प्रबद्धकी वर्गणाओंका कहा है सब वर्गणाओंका नहीं। शंका-- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-- वर्गणाग्र और प्रदेशाग्रकी अपेक्षा तेजसशरीरवर्गणासे आहारवर्गणा अनन्तगुणी होती है । उससे अनन्तगुणी हीन होने में विरोध आता है। इसलिए एक योग से आनेवाली औदारिकशरीर द्रव्यवर्गणायें प्रदेशाग्न और वर्गणानकी अपेक्षा स्तोक हैं यह कहा है । आहारवर्गणाके वर्गणाग्र के असंख्यात खण्ड करने पर वहाँ बहुभाग प्रमाण आहारक शरीर प्रायोग्य वर्गणाग्र होता है। शेष के असंख्यात खण्ड करने पर बहुभागप्रमाण वैक्रियिकशरीरप्रायोग्य वर्गणाग्र होता है । तथा शेष एक भागप्रमाण औदारिकशरीरप्रायोग्य वर्गणाग्र * ता० प्रती ' वग्गणेण च इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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