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________________ बंधणाणुयोगद्दारे विस्सासुवचयपरूवणा अप्पाबहुअं दुविहं--जीवअप्पाबहुअं चेव पदेसअप्पाबहुअं चेव ॥ ५६८ ॥ एवमप्पाबहुअं एत्थ दुविहं चेव होदि । जीवअप्पाबहुगादो चेव पदेसअप्पा - बहुअं णज्जदि तेण तण्ण वत्तत्वं त्ति? ण, सन्वेसि जीवाणं जीवपदेसा सरिसा चेव होति ति जाणावणठें तप्परूवणादो । गुरूवदेसादो चेव तण्णादमिदि तप्परूवणा ण णिरत्थिया, सुत्तेण विणा गुरूवएसस्स अप्पवृत्तीए । जीवअप्पाबहुए त्ति सव्वत्थोवा तसकाइयजीवा ॥ ५६९ ।। जगपदरस्स असंखेज्जदिमागत्तादो। तेउक्काइयजीवा असंखेज्जगुणा ॥ ५७० ॥ को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा। पुढविकाइया जीवा विसेसाहिया ।। ५७१ ।। केत्तियमेत्तो विसेसो? असंखेज्जा लोगा, तेउक्काइयजीवाणमसंखेज्जविभागो। को पडिभागो? असंखेज्जा लोगा। एवं सम्वत्थ वत्तव्वं । अल्पबहुत्व दो प्रकारका है- जीवअल्पबहुत्व और प्रदेशअल्पबहुत्व । ५६८० इस प्रकार अल्पबहुत्व यहाँ पर दो प्रकारका ही होता है। शंका-- जीवअल्पबहुत्वसे ही प्रदेश अल्पबहुत्वका ज्ञान हो जाता है, इसलिए उसका कथन नहीं करना चाहिए ? समाधान-- नहीं, क्योंकि, सब जीवोंके जीवप्रदेश समान ही होते हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिए उसका कथन किया है। गुरुके उपदेशसे ही उसका ज्ञान हो जाता है, इसलिए उनका कथन करना निरर्थक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि, सूत्रके विना गुरुके उपदेशकी प्रवृत्ति नहीं होती। जीवअल्पबहुत्वकी अपेक्षा त्रसकायिक जीव सलसे स्तोक हैं । ५६९ । क्योंकि, वे जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण है। उनसे तैजस्कायिक जीव असंख्यातगणे हैं। ५७० । गणकार क्या है ? असंख्यात लोकप्रमाण गुणकार है। उनसे पृथिवीकायिक जीव विशेष अधिक हैं। ५७१ । विशेषका प्रमाण कितना है ? तेजस्कायिक जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण जो असंख्यात लोक है उतना विशेषका प्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? असंख्यात लोक प्रतिभाग है। इसी प्रकार सर्वत्र कथन करना चाहिए । ४ अ० प्रती 'पुढविकाइया जीवा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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