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________________ ५, ६, १६७ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरी रपरूवणाए अंतरपरूवणा ( २९३ बादरेइंदियअपज्जतमंगो। तेउ०-वाउ० बिसरीर-तिसरीर-चदुसरीरा ओघं । णवरि विसेसो जत्थ चदुसरीराणमणंतकालो तत्थ पलिदो० असंखे०भागो वत्तव्यो। नादरतेउ०-बावरवाउ० बिसरीराणं बादरपुढ विमंगो। तिसरीरा ओघं । चदुसरीराणमंतर केवचिरं का होदि ? जाणाजी०प० पत्थि अंतरं एगजीवं प० जह० अंतोमुत्तं उक्क० पलिदो० असंख० भागो। बादरतेउक्काइयपज्जत्त० बिसरीराणमंतरं केवचि० का होदि? जाणाजी०प० जह० एगसमओ, उक्क० चदुवीसमहुत्ता। एगजीनं प० जह० अतोमुहुत्तं बिसमऊणं, उपक० संखेज्जाणि वस्तसहस्प्ताणि । तिसरीरा ओघ । चदुसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि? जाणाजी० ५० णस्थि अंतरं। एगजीनं प० जह० अंतोम०, उक्क० खेज्जाणि वस्ससहस्साणिाबादरवाउक्काइयपज्जत्त० बिसरीराणमंतर केवचिरं का. होदि ? जाणाजी० ५० पत्थि अंतरं । एगजीनं प० जह० अतोमहत्तं विसमऊणं, उक्क० संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । तिसरीरा ओघं । चदुसरीराणमंतरं के० का० होदि?णाणाजी० १० पत्थि अंतरं । एगजीनं प० जह० अतोमहत्तं, उक्क० संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । बादरतेउ० बादरवाउ० अपज्जत्ताणं बादर पुढवि०अपज्जत्तभंगो सहमपूढवि०-सहमआउ० सहमतेउ०-सहमवाउ०-पज्जत्ता तीन शरीरवाले जीवोंका भंग बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान है। अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंमें दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका भंग ओघके समान है। इतना विशेष है कि जहाँ पर चार शरीरवालोंका उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल कहा है वहाँ पल्य के असख्यातवें भागप्रमाण कहना चाहिए । बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक जीवोंमें दो शरीरवालोंका भंग बादर पृथिवीकायिक जीवोंके समान है तथा तीन शरीरवालोंका भंग ओघके समान है। चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें गप्रमाण है। बादर अग्निकायिक पर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर दो समय कम अन्तमहत है और उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष है । तीन शरीरवालोंका भंग ओघ के समान है । चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्ध अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष है। बादर वायु कायिक पर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर दो समय कम अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष है । तीन शरीरवालोंका भंग ओघके समान है। चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ठ अन्तर संख्यात हजार वर्ष है। बादर अग्नि कायिक अपर्याप्त और बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीवोंमें बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त जीवोंके समान भंग है । सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म अग्निकायिक और सूक्ष्म वायुकायिक तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंका भंग सूक्ष्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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