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________________ ५, ६, १६७ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए कालपरूवणा । २८३ सासणसम्माइट्ठी बिसरीराणं सम्माइटिभंगो। तिसरीरा चदुसरीरा केवचिरं का. होति ? णाणाजीवं १० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० छ आवलियाओ । सम्मामिच्छाइट्ठी तिसरीरा चदुसरीरा केवचिरं का. होंति ? णाणाजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० दोण्हं पिपलिदो० असंखे० भागो। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुतं । चदुसरीराणं कथमेगसमओ? सम्मामिच्छत्तद्धाए एगसमयावसेसाए विउविदाणमेगसमओ। मिच्छाइट्ठी० बिसरीरा तिसरीरा चदुसरीरा ओघं । सणियाणवादेण सण्णीसु बिसरीर तिसरीर-चदुसरीराणं पंचिदियपज्जत्तभंगो। असण्णी० निसरीर-तिसरीर-चदुसरीराणमोघं । वसण्णि-णेवअसणीसु तिसरीरा केवचिरं का० होंति ? णाणाजीवं प० सम्वद्धा । एगजीवं ५० जह० अंतोमहत्तं, अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें दो शरीरवाले जीवोंके कालका भंग सम्यग्दृष्टियोंके समान है। तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पत्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह आवलिप्रमाण है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दोनोंका पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। शका-- चार शरीरवालोंका एक समय काल कैसे है ? समाधान-- सम्यग्मिथ्यात्वके कालमें एक समय शेष रहने पर विक्रिया करनेवालोंके एक समय काल प्राप्त होता है। मिथ्यादृष्टि जीवों में दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंके कालका भंग ओघके समान है। विशेषार्थ - - उपशमसम्यदृष्टियोंमें नाना जीवोंकी अपेक्षा तीन शरीरवालोंका जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है यह तो स्पष्ट ही है, क्योंकि, जो उपशमसम्ययक्त्वको प्राप्त करता है वह अन्तर्मुहुर्त काल तक उसके साथ नियमसे रहता है । यहाँ उपशमश्रेणिसे नीचे उपशमसम्यक्त्वके साथ मरण नहीं होता इसलिए तथा जो इसके काल में विक्रिया करके चार शरीरवाला होता है उसके अन्तर्महर्त कालके पहले उपशमसम्यक्त्वसे पतन नहीं होता, इसलिए उपशमसम्यक्त्वमें चार शरीरवालोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमहतं कहा है। शेष कथन सुगम है। संज्ञी मार्गणाके अनुवादसे संज्ञियोंमें दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंके कालका भंग पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके समान है। असंज्ञी जीवोंमें दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंके कालका भंग ओघके समान है। न संज्ञी और न असंज्ञी जीवोंमें तीन शरीरवाले जीवोंका काल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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