SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५, ६, १६७. ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए कालपरूवणा (२६९ तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु बिसरीरा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० तिण्णि समया। तिसरीरा केवचिरं का होंति? णाणाजीवं पडु० सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० अंगुलस्स असंखे० भागो असंखेज्जाओ ओस प्पिणि-उस्सप्पिणीओ। चदुसरीरा केवचिरं का. होंति? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुत्तं। पंचिदियतिरिक्ख-पंचिदियतिरिक्खपज्जत्त-चिदियतिरिक्खजोणिणीसु बिसरीरा केवचिरं का. होंति? णाणाजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंख० भागो। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया। तिसरोरा केवचिरं का होति? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० तिग्णि पलिदोवमाणि पुव्वकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि। चदुसरीरा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं प० सव्वद्धा। एगजीवं प० जहण्णण एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुतं । पंचिदियतिरिक्खअपज्जत्तेसु बिसरीरा केवचिरं का. होंति? णाणाजीनं प० जह० एगसमओ, उक्क आवलि० असांखे० भागो। भागप्रमाण कहा है। तथा एक जीव यहां सर्वत्र यदि विग्रहसे उत्पन्न हो तो कमसे कम एक विग्रह और अधिकसे अधिक दो विग्रह लेकर उत्पन्न होता है, इसलिए यहां एक जीवको अपेक्षा दो शरीरवालोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय कहा है। विग्रहके इन दो समयोंकी अपनी जघन्य स्थितिमेसे कम कर देने पर सर्वत्र एक जीवकी अपेक्षा तीन शरीरवालों का जघन्य काल होता है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है यह स्पस्टही है। तथा नरकति निरन्तर मार्गणा है, इसलिए नाना जीवोंको अपेक्षा तीन शरीरवालोका काल सर्वदा है यह भी स्पष्ट है। तिर्यंचगतिकी अपेक्षा तिर्यंचोंमें दो शरीरवालोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय हैं। तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवौकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है जो असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सपिणी कालप्रमाण है। चार शरीरवालोंका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। पचेंद्रियतियंच, पंचेंद्रियतिथंच पर्याप्त और पचेंद्रियतियंच योनिनियों में दो शरीरवालोंका कितना काल है ? नाना जोवोंको अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवका अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । तीन शरीरवालोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपयक्त्व अधिक तीन पल्यप्रमाण है। चार शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नानाजीवोंको अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है । पंचेंद्रियतिर्यच अपर्याप्तकोंम दो शरीरवाले जीवोंका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy