SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ ) छवखंडागमे वग्गणा - खंड (५, ६, ११६. को गुण ० ? अनंता लोगा । बादरणिगोदवग्गणासु एगसेडिवग्गणा असंखेज्जगुणा । को गुण० ? सेडीए असंखे० भागो पलिदोवमस्स असंखे० भागेण गुणिदो । तदियधुवसुण्णवगणासु एगसेडिवग्गणा असंखेज्जगुणा । को गुण ०? अंगुलस्स असंखे ० भागो । सुमणिगोदवग्गणासु एगसेडिवग्गणा असंखेज्जगुणा । को गुण ० ? पलिदो० असंखे० भागो आवलियाए असंखे ० भागेण गुणिदो । महाखंधवग्गणासु एगसेडिवग्गणा असंखेज्जगुणा । को गुण० ? जगपदरस्स असंखे ० भागे पलिदो असंखे० भागेण खंडिदे तत्थ एगखंडं गुणगारो । चउत्थधुवसुण्णवग्गणासु एगसेडिवग्गणा असंखे० गुणा । को गुण० ? पलिदो० असंखे० भागो । महाखंधवग्गणाए पदेसा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? चउत्थधुवसुण्ण० पलिदो० असंखे० भागेण खंडिय तत्थ एगखंडमेत्तेण । बादरणिगोदवग्गणासु णाणासेडिसव्वपदेसा असंखेज्जगुणा । सुहुमणिगोदवग्गणासु णाणासेडिसव्वपदेसा असंखेज्जगुणा । सांतरणिरंतरवग्गणासु णाणासेडिसव्वदव्वा अनंतगुणा । को गुण० ? सव्वजीवेहि अनंतगुणो । तासु चेव णागासेडिसव्वपदेसा अनंतगुणा । को गुणगारो ? सव्वजीवेहि अनंतगुणो । धुवक्खंधवग्गणासु णाणा से डिसव्वदव्वा अतगुणा । को गुणगारो ? सव्वजोवेहि अनंतगुणो । तं जहा -सांतरणिरंतर वग्गणा ए दाए पट्टदाए च पढमवग्गणा चेव पहाणा, सेसवग्गणसव्वपदेसाणं तदणंतिम एकश्रेणिवर्गणायें अनन्तगुणी हैं । गुणकार क्या है ? अनन्त लोकप्रमाण गुणकार है । बादरनिगोदवर्गणाओंमें एकश्रेणिवर्गणायें असंख्यातगुणी हैं। गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यात वें भागसे गुणित जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । तीसरी ध्रुवशून्यवर्गणाओंमें एकश्रेणिवर्गणायें असंख्यातगुणी हैं। गुणकार क्या है ? अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । सूक्ष्मनिगोदवर्गणाओं में एकश्रेणिवर्गणायें असंख्यातगुणी हैं । गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागसे गुणित पल्यके असंख्यातवें भागत्रमाण गुणकार है । महास्कन्धवर्गणाओंमें एकश्रेणिवर्गणायें असंख्यातगुणी हैं । गुणकार क्या है । जगप्रतरके असंख्यातवें भागमें पल्यके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे वह गुणकार है । चौथी ध्रुवशून्य वर्गणाओंमें एकश्रेणिवर्गणायें असंख्यातगुणी हैं । गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । महास्कन्धवर्गणा के प्रदेश विशेष अधिक हैं । कितने अधिक हैं ? चौथी ध्रुवशून्यवर्गणा में पल्यके असंख्यातवें भागका भाग देने पर वहाँ जो एक भाग लब्ध आवे उतने अधिक हैं। बादरनिगोदवर्गणाओं में नानाश्रेणि सब प्रदेश असंख्यातगुणे हैं । सूक्ष्मनिगोदवर्गणाओं में नानाश्रेणि सब प्रदेश असंख्यातगुणे हैं । सान्तरनिरन्तरवर्गणाओं में नानाश्रेणि सब द्रव्य अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है । उन्हीं में नानाश्रेणि सब प्रदेश अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है । ध्रुवस्कन्धवर्गणाओं में नानाश्रेणि सब द्रव्य अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है । यथा-सान्तर निरन्तरवर्गणा में द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थताकी Q म० प्रतिपाठोऽयम् । प्रतिषु 'असंखे० भागो पलिदो०' इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy