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________________ ५, ६, ११६.) बंधणाणुयोगद्दारे जवमज्झपरूवणा (२०७ सव्वेसु ढाणेसु वग्गणाओ विसेसाहियाओ। केत्तियमेत्तेण? जवमज्झहेट्ठिमट्ठाणवग्गणमेत्तेण । एवं बादरसुहमणिगोदवग्गणाणं जवमज्झपरूवणाए छ,णयोगद्दाराणि परूवेदव्वाणि । पदेसट्टदाए जवमज्झं वुच्चदे । तं जहा-परमाणुवग्गणपदेसेहितो दुपदेसियवग्गणपदेसा विसेसाहिया। एवं विसेसाहिया विसेसाहिया जाद दवट्ठदाए दिवड्डगुणहाणिट्ठाणंतरमेत्तमद्धाणं गंतूण दोसुटाणेसु जवमज्झं होदि। तत्तो उवरि विसेसहीणा विसेसहीणा जाव विसेसहीणवग्गणाओ गिट्ठिदाओ त्ति। एवं जवमझे त्ति समत्तमणुयोगद्दारं । पदमीमांसाए परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा जहण्णा अजहण्णा? उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा जहण्णा वा अजहण्णा वा । एवं णेयव्वं जाव धुवक्खंधदव्ववग्गणे त्ति । अचित्तअद्धवक्खंधदव्ववग्गणाओ सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि तो उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा जहण्णा वा अजहण्णा वा । एवं पत्तेयसरीरबादरणिगोदसुहमणिगोदमहाखंधवग्गणाणं पि वत्तव्वं । णवरि महाखंधवग्गणाए एयसमयम्मि सरिसधणियवग्गणाओ णत्थि, साभावियादो। परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणाए जहण्णादो उक्कस्सिया विसेसाहिया। विसेसो पुणोअणंताणि पोग्गलपढमवग्गमूलाणि। स्थानोंमे वर्गणायें विशेष अधिक हैं। कितनी अधिक है? यवमध्यसे अधस्तन स्थानकी वर्गणामात्र अधिक हैं । इसी प्रकार बादर निगोदवर्गणा और सूक्ष्मनिगोदवर्गणाओंके यवमध्यका प्ररूपणा करते समय छह अनुयोगद्वारका कथन करना चाहिए। __अब प्रदेशार्थताको अपेक्षा यवमध्यका कथन करते हैं। यथा-परमाणुवर्गणाके प्रदेशोंसे द्विप्रदेशी वर्गणाके प्रदेश विशेष अधिक हैं। इस प्रकार द्रव्यार्थताकी अपेक्षा डेढ़गुणहानि स्थानान्तरमात्र अध्वान जाकर दो स्थानोंमें यवमध्यके प्राप्त होनेतक विशेष अधिक विशेष अधिक जानना चाहिए । इसके आगे विशेष हीन वर्गणाओंके समाप्त होनेतक विशेष हीन विशेष हीन जानना चाहिए। इस प्रकार यवमध्य अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। पदमीमांसाकी अपेक्षा परमाणुपुदगलद्रव्यवर्गणा क्या उत्कृष्ट होती है, अनुत्कृष्ट होती है, जघन्य होती है या अजघन्य होती है? उत्कृष्ट होती है, अनुत्कृष्ट होती है, जघन्य होती है और अजघन्य होती है । इस प्रकार ध्रुवस्कन्धवर्गणाके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए । अचित्त अध्रुवस्कन्ध द्रव्यवर्गणायें कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं ? यदि है तो उत्कृष्ट होती है, अनुत्कृष्ट होती हैं, जघन्य होती हैं और अजघन्य होती हैं। इसी प्रकार प्रत्येकशरीरवर्गणा, बादरनिगोदद्रव्यवर्गणा, सूक्ष्मनिगोदद्र व्यवर्गणा और महास्कन्धवर्गणाओं के विषयमें भी कहना चाहिए । इतनी विशेषता है कि महास्कन्धवर्गणाकी अपेक्षा एक समय में सदृश धनवाली वर्गणायें नहीं हैं, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। परमाणुपुदगलद्रव्यवर्गणाकी अपेक्षा जघन्यसे उत्कृष्ट विशेष अधिक है । तथा विशेष पुद्गलके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण हैं। उनका प्रतिभाग क्या ता०प्रतौ 'उक्कस्सा वा जहण्णा वा' इति पाठः । म म०प्रतिपाठोऽयम् । ता०प्रतौ 'विसेसाहिया विसेसाहिया । पूणो' अ०प्रती 'विसेसाहिया विसे० २ । पूणो' का०प्रतौ विसेसाहिया विसेसाहिया पुणो' इति पाठ :। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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