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________________ ५,५,४६. ) ( २४९ पडअणुओगद्दारे अक्ख रपमाणपरूवणा तेसि मक्खर संजोगाणं गणिदे गगणाए एसा गाहा होदि । ' संजोगावरणट्ठ, अक्खरसंजोगावरणपमाणाणयणदृमिदि वृत्तं होदि । ' चउट्ठ थावए' अक्खराणं चखिं तेहितो धभावेण कव्विय विरलेदूण कम्मभूमीए बुद्धीए वा ठावए * । एत्थ चउसद्विअक्खरट्ठवना एसा अ आ आ३ । इ ई ई ३ । उ ऊ ऊ३ । ऋ ऋ ऋ३ । लृ ऌ ॡ३ । ए ए ए३ । ऐ ऐ ऐ३ । ओ ओ ओ३ । औ औ औ३ । क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व । शषसह । क पअं अ: । एदेसि अक्खराणं मज्झे कँ खँ गँ घ ङ एदाओ पंच वि धारणाओ कि गहिदाओ ? ण, सरविरहिय - कवग्गाणुसारिसंजोग म्हि समुप्पण्णाणं धारणाणं * संजोगक्खरेसु पवेसादो । दुवे रासि ' एदेसिमक्खराणं संखं रास दुवे विरलिय दुर्गाणिदमण्णोष्णेण संगुणे अण्णोष्णसमभासो एत्तियो होदि१८४४६७४४०७३७०९५५१६१६ । एदम्मि संखाणे रूवणे कदे संजोगक्खराणं गणिदं होदिति णिद्दिसे । संपहि चउसट्ठिअक्खरसंखं विरलिय विगुणिदं वग्गिय + " 1 उन अक्षरसंयोगों की गणना करनेके लिये यह गाथा आई है ।' संयोगावरणों के लिये ' इस पदका तात्पर्य है- अक्षरसंयोगावरणोंका प्रमाण लानेके लिये । 'चउसट्ठि थावए इसका तात्पर्य है कि अक्षरोंकी चौंसठ संख्याकी उनसे पृथक् रूपसे कल्पना कर और उसका विरलन कर कर्मभूमि ( क्रियास्थल ) में या बुद्धि में स्थापित करे । ऋ यहां चौंसठ अक्षरों की स्थापना इस प्रकार है- अ आ आ३, इ ई ई३, उ ऊ ऊ३, ऋ ऋ३, लृ ऌ ॡ३, ए ए२ ए३, ऐ ऐ२ ऐ३, ओ ओर ओ३, ओ और औ३, क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह, क प अं अः । शंका- इन अक्षरों में कँ खँ गँ घूँ ङ इन पांच धारणाओंका क्यों नहीं ग्रहण किया ? समाधान नहीं, क्योंकि, स्वररहित कवर्गका अनुसरण करनेवाले संयोगमें उत्पन्न हुई धारणाओं का संयोगाक्षरों में अन्तर्भाव हो जाता हैं । - ' दुवे रासि' इस पदका अभिप्राय है कि इन अक्षरोंकी संख्याकी राशि प्रमाण २ का विरलन कर परस्पर गुणा करनेपर परस्पर गुणा करनेसे प्राप्त हुई राशि इतनी होती है- १८४४६७४४०७३०९५५१६१६ | इस संख्या में से एक कम करनेपर संयोगाक्षरोंका प्रमाण होता है, ऐसा निर्देश करना चाहिये । अब चौंसठ अक्षरोंकी संख्याका विरलनकर और उसे द्विगुणित कर वर्गित संवर्गित करनेपर पाठ । प्रतिषु दीरणाणं ' इति पाठ: 16 एक च च य छस्सत्तयं सुण णव पण पंच य एक्कं छक्केक्कगो य पणगं च 1 गो. जी, ३५४ * आ-काप्रत्योः ' रावए, ताप्रती ' रा ( था ) वए इति पाठः । अ-ताप्रत्यो: ' धीरणाओ' इति च च य सुण्णऽसत्त-तिय- सत्ता 1 प्रतिषु ' वग्गियं ' इति पाठः । Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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