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________________ ३६३ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना तक प्रकाशित है। इसमें भी सूरिमंत्र के साथ-साथ उसकी साधना विधि भी वर्णित है। सूरिमंत्र संग्रह यह कृति भी सूरिमंत्रकल्पसमुच्चय, 'द्वितीय भाग' संपादक-मुनि जम्बूविजयजी में पृ० २३१ से २३४ तक प्रकाशित है। ज्ञातव्य है कि उपरोक्त सूरिमंत्र से संबंधित विभिन्न कृतियों में लब्धिपदों की संख्या, पदसंख्या, अक्षरसंख्या आदि को लेकर मतभेद देखा जाता है। यह मान्यता है कि काल क्रम में सूरिमंत्र के पद, अक्षर आदि में कमी हुई। इसमें सूरिमंत्र संबंधी गौतमवाचना, श्रुतकेवलीवाचना, वज्रवाचना, नागेन्द्रवाचना, चन्द्रवाचना, विद्याधरवाचना आदि वाचना भेद उल्लिखित हैं। कोकशास्त्र तपागच्छ की कमलकलश शाखा के नर्बुदाचार्य ने ई० सन् १५६६ में इस कृति की रचना की। इस कृति में मंत्र-तंत्र संबंधी विपुल सामग्री संचित हैं। इसमें चार प्रकार की स्त्रियों को वश में करने से संबंधित विभिन्न मंत्रों और तंत्रों के उल्लेख भी हैं। इस कृति में यह भी बताया गया है कि कौनसी स्त्री किस प्रकार की तांत्रिक साधना से वशीभूत होती है। निवृत्तिमार्गी जैन धर्म तांत्रिक साधनाओं से प्रभावित होकर किस प्रकार वासनामय लौकिक एषणाओं की पूर्ति हेतु की ओर अग्रसर हुआ यह इस कृति से पता लगता है। मंत्र-यंत्र-तंत्र संग्रह इस कृति के कर्ता का नाम भी अज्ञात है। इस पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर बारीक अक्षरों में ‘णमोकार कल्प प्रारम्भ लिखते' लिखा हुआ है, जो बागड़ी ५ मारवाड़ी बोली के शब्दों में लिखा है। इसकी पत्र संख्या नौ है। इसका संग्रह १६वीं शती में सागवाड़ा गद्दी के भट्टारक के किसी अनुयायी ने किया होगा, ऐसा अनुमान लगाया जाता है। इसमें वशीकरण, उच्चारण, मारण, विद्वेषण, स्तम्भन आदि सम्बन्धी मंत्र-यंत्रों का संग्रह है। यह कृति श्री सोहनलाल दैवोत के निजी भण्डार में सुरक्षित है। मंत्र शास्त्र इसके रचयिता के विषय में भी कोई सूचना उपलब्ध नहीं होती। इस पुस्तक में पत्र संख्या २४ के बाद के पत्र नहीं मिलते। इसको भी बागड़ी, मारवाड़ी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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