SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माक्षशास्त्र सटीक सात क्षेत्रोंके नाम भरत-हैमवत-हरि-विदेह-रम्यक-हैरण्यव तेरावतवर्षाः क्षेत्राणि ॥१०॥ अर्थ- इस जम्बूद्वीपमें भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक हैरण्यवत और ऐरावत ये क्षेत्र हैं॥१०॥ क्षेत्रोंका विभाग करनेवाले ६ कुचालकोके नामतद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवनिषधनीलरूक्मिशिखरिणोवर्षधरपर्वताः।११। अर्थ- ( तद्विभाजिनः ) उन सात क्षेत्रोंका विभागकरने वाले ( पूर्वापरायताः) पूर्वसे पश्चिम तक लम्बे हिमवन्महाहिमवनिषधनीलरूक्मिशिखरिणः) हिमवत्, महाहिमवत्, निषध, नील, रूक्मिन् और शिखरिन् ये छह ( वर्षधरपर्वताः) वर्षधरकुलाचल पर्वत हैं। वर्ष-क्षेत्र ॥११॥ कुलाचलोंके वर्ण हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममयाः ॥१२॥ अर्थ- ऊपर कहे हुए पर्वत क्रमसे सुवर्ण, चांदी तपाया हुआ सुवर्ण, वैडूर्य (नील) मणि, चांदी और सुवर्णके समान वर्णवाले हैं । १२॥ कुलाचलोंका आकार मणिविचित्रपार्था उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy