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________________ ३८] मोक्षशास्त्र सटीक भावार्थ-संसारी जीवकी गति मोडा रहित भी होती है। और मोड़ा सहित भी। जो मोड़ा रहित होती है उसमें एक समय लगता है। जिसमें एक मोड़ा लेना पड़ता है उसमें दो समय, जिसमें दो मोडा लेना पडते हैं उसमें एक समय लगता है। जिसमें एक मोड़ा लेना पड़ता है उसमें तीन समय और जिसमें तीन मोडा लेना पडते हैं उसमे चार समय लगते हैं। पर यह जीव चौथे समयमें कहीं न कहीं नवीन शरीर नियमसे धारण कर लेता है, इसलिये विग्रह गतिका समय चार समयके पहले पहले तक कहा गया है।' अविग्रहागतिका समयएकसमयाऽविग्रहा ॥२९॥ अर्थ- ( अविग्रहा) मोड़ा रहित गति ( एकसमया) एक समय मात्र होती हैं अर्थात् उसमें एक समय ही लगता है ॥२९॥ विग्रहगतिमें आहारक अनाहारककी व्यवस्था एकं द्वौ त्रीन्वानाहारकः ॥३०॥ अर्थ-विग्रह गतिमें जीवएक दो अथवा तीन समय तक अनाहारक रहता है। आहार- औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर तथा ६ पर्याप्तियोंके योग्य पुद्गल परमाणुओंके ग्रहणको आहार कहते हैं। भावार्थ- जब तक जीव उपर कहेहए आहारको ग्रहण नहीं करता तबतक वह अनाहारक कहलाता है। संसारी जीव अविग्रहा गतिमें आहारक ही होता है ।किन्तु एक दो और तीन मोड़वाली गतियोंमे क्रमसे एक दो और तीन समय तक अनाहारक रहता हैं। चौथे समयमें नियमसे आहारक हो जाता है ॥३०॥ 1. उक्त गतियोंके ४ भेद है १ ऋजुगति (इषुगति) २ पाणिमुक्ता गति. ३ लाङ्गलिका गति, ४ गोमूत्रिका गति । ऋजुगतिवाला जीव अनाहारक नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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