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________________ [१३] एक पाटिये पर लिख छोडा। एक समय चर्यार्थ श्रीगृद्धपिच्छाचार्य 'उमास्वामी' नामके धारक मुनिवर आये और उन्होंने आहार लेनेके पश्चात् पाटियेको देखकर उसमें “सम्यक्" शब्द जोड़ दिया। जब वह सिद्धय्य विद्वान् वहांसे अपने घर आया और उसने प्रसन्न होकर अपनी मातासे पूछा कि, किन महानुभावने यह शब्द लिखा है ? माताने उत्तर दिया कि एक महानुभाव निर्ग्रन्थाचार्यने यह बनाया है। इस पर वह गिरि और अरण्यको ढूंढ़ता हुआ उनके आश्रममें पहुँचा और भक्तिभावसे नमभूत होकर उक्त मुनिमहाराजसे पूछने लगा कि आत्माका हित क्या है? मुनिराजने कहा-आत्माका हित 'मोक्ष' है। इसपर मोक्षका स्वरूप और उसकी प्राप्तिका उपाय पूछा गया, जिसके उत्तररूपमें ही इस ग्रन्थका अवतार हुआ है। इसी कारण इस ग्रंथका अपरनाम " मोक्षशास्त्र " भी है। कैसा अच्छा वह समय था, जब दिगम्बर और श्वेताम्बर आपसमें प्रेमसे रहते हुए धर्मप्रभावनाके कार्य कर रहे थे। श्वेतांबर उपासक सिद्धय्यके लिये एक निर्ग्रन्थाचार्यका शास्त्र रचना करना इसी वात्सल्यभावनाका द्योतक है। यह निर्ग्रन्थाचार्य उमास्वामी ही थे। धर्म और उसके लिए उनने क्या क्या किया यह कुछ ज्ञात नहीं होता। इस कारण इन महान आचार्य के विषयमें इस संक्षिप्त वृत्तांतसे ही संतोष धारण करना पड़ता है। दिगम्बर सम्प्रदायमें वह श्रृति मधुर 'उमास्वामी' और श्वेतांबर सम्प्रदायमें वह 'उमास्वाति' के नामसे प्रसिद्ध है:-बाबू कामताप्रसादजी कृत 'वीर पाठावलि' से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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