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________________ मोक्षशास्त्र सटीक पंचम अध्याय अजीवतत्वका वर्णन अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः ॥१॥ अर्थ- (धर्माधर्माकाशपुद्गलाः) धर्म अधर्म आकाश और पुद्गल ये चार ( अजीवकायाः) अजीव तथा बहुप्रदेशी हैं। नोट- इन सूत्रमें बहुप्रदेशी नहीं होनेसे काल द्रव्यका ग्रहण नहीं किया है' ॥१॥ द्रव्योंकी गणना द्रव्याणि ॥२॥ अर्थ- उक्त चार पदार्थ द्रव्य हैं। द्रव्यका लक्षण आगेके सूत्रोंमें कहा जावेगा ॥२॥ जीवाश्च ॥३॥ अर्थ- जीव भी द्रव्य है। नोट- यहां 'जीवाः' इस बहुवचनसे जीवद्रव्यके अनेक भेद सूचित होते है। इनके सिवाय ३९वें सूत्रमें कालद्रव्यका भी कथन होगा, इसलिये इन सबको मिलानेपर १-जीव द्रव्य, २-पुद्गल द्रव्य, ३-धर्म द्रव्य, ४-अधर्म द्रव्य, ५-आकाश द्रव्य और ६-काल द्रव्य ये छह द्रव्य होते हैं ॥३॥ __द्रव्योंकी विशेषतानित्यावस्थितान्यरूपाणि ॥४॥ अर्थ- उपर कहे हुए सभी द्रव्य नित्य अवस्थित और अरूपी हैं । 1. जो द्रव्य सत्तारूप होकर बहुप्रदेशी हों उन्हें अस्तिकाय कहते है। वे पांच है - १ जीव, २ पुद्गल, ३ धर्म, ४ अधर्म और ', आकाश। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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