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________________ चन्द्र ग्रह चन्द्र ग्रह बुध की उंगली के नीचे, मंगल व कलाई के बीच में होता है (देखें चित्र-22)। हथेली जिस स्थान पर कलाई के पास मिलती है, उस स्थान पर अंगूठे के दूसरी ओर चन्द्रमा स्थित है। चन्द्रमा का सम्बन्ध कल्पना से है। यहां यह बात विशेष रूप से जानने की है कि चन्द्रमा अधिक उठा, तीखा या अधिक बैठा हानिकारक होता है। उन्नत होने पर यह अन्य ग्रहों से विशेष दीखता है। अधिक उन्नत होने के कारण गुण, दुर्गुणों में बदल जाते हैं तथा अधिक बैठा होने के कारण भी उपरोक्त गुणों में या तो कमी होती है या अधिकता। अतः यह साधारण होना ही श्रेयष्कर होता है। चित्र-22 चन्द्र ग्रह उत्तम चन्द्रमा व्यक्ति में सौन्दर्य, प्रशंसा की भावना, कलात्मकता एवं सौन्दर्य प्रसाधन में रुचि का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति सन्तुलित मस्तिष्क के होते हैं, परन्तु इनमें कल्पना की भावना अवश्य देखी जाती है। उत्तम कोटि के कवियों में चन्द्रमा उत्तम होता है, परन्तु अधिक उठा हुआ नहीं। ये सौन्दर्य के प्रतीक की उपासना करते हैं। अति उन्नत चन्द्रमा होने पर व्यक्ति में कल्पना अधिक आ जाती है। अत: ये कल्पना और वासना प्रिय होते हैं। कभी-कभी यह भावना पागलपन तक पहुंच जाती है। हाथ में अन्य रेखाओं में दोष होने पर निश्चय ही ऐसे व्यक्ति पागलखाने तक जाते हैं। स्त्रियों में यह दोष पाए जाने पर आत्महत्या का प्रयत्न करती हैं, अन्यथा सोचती अवश्य हैं। अन्य लक्षण होने पर यदि चन्द्र अत्यधिक उठा हुआ हो तो आत्महत्या कर ही लेती हैं। इसमें कोई शंका नहीं कि ये मानसिक रोगी होते हैं। ये आवश्यकता से अधिक वहमी होते हैं। मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा का जोड़ भी लम्बा हो तो फिर क्या कहना। ये सोचते हैं कि फलां काम ऐसे होगा, फलां काम वैसे होगा, मैं पागल हूं, मुझ पर जादू कर दिया गया है, वह मुझ पर मरती है, मैं नपुंसक हो जाऊंगा आदि-आदि। जीवन रेखा में द्वीप बड़ा होने पर इन्हें टी.बी. या जलोदर जैसा रोग हो जाता है। ये विशेष कामुक होते हैं और अति भावुक होने के कारण इनमें यौन शिथिलता आ जाती है। शीघ्र पतन, स्वप्न दोष, श्वेत प्रदर, हिस्टीरिया आदि रोग विकार इनमें देखे जाते हैं। इन्हें अधिक यौन चिन्तन न करके ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। 79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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