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________________ उन्नत या कम रेखा वाला, जीवन रेखा एवं भाग्य रेखा निर्दोष हो तो सफलता मिलती है। उस समय कार्य में भी परिवर्तन उपस्थित होता है। नौकरी में होने पर स्थानान्तरण होता है, व्यापारी होने पर किसी के साझे में व्यापार किया जाता है या कोई अन्य कार्य किया जाता है (चित्र-82)। मस्तिष्क रेखा से कोई शाखा निकल कर यदि बुध के नीचे हृदय रेखा पर मिली हो तो जहर से मृत्यु की सम्भावना रहती है। दोनों रेखाएं एक शनि तथा एक बुध के नीचे हो तो जो भी गहरी होती है अर्थात् बुध की रेखा गहरी होने पर जहर से या सांप के काटने से तथा शनि की रेखा गहरी होने पर पानी या आग से मृत्यु होती है। ___ मस्तिष्क रेखा से बुध पर यदि गहरी रेखा जाती हो तो ऐसे व्यक्ति शुद्ध विचार वाले तथा विद्वान होते हैं। इन्हें बड़ी आयु में धन वृद्धि, सन्तान वृद्धि, जायदाद वृद्धि व रोग निवारण होता है। ऐसे व्यक्तियों को गृहस्थ चित्र-82 संचालन का व्यवहारिक ज्ञान होता है। जिनकी हृदय व मस्तिष्क रेखा को बुध या शनि के नीचे कोई अन्य रेखा काटती हो और यह रेखा गोलाकार न हो तो ऐसे व्यक्ति लम्बी बीमारी के बाद कष्ट से मृत्यु प्राप्त करते हैं। इन्हें जहर, सांप, बिच्छू या जहरीले इन्जैक्शन लगने का भी योग होता है। मस्तिष्क रेखा में शाखा होने पर व्यक्ति की रूचि आध्यात्मिक होती है। ये कमीशन एजेन्ट या ठेकेदारी का कार्य भी करते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा से कोई मोटी शाखा हृदय रेखा पर मिले तो भी व्यक्ति ठेकेदारी करता है, बृहस्पति उन्नत होने पर इस ठेकेदारी का सम्बन्ध सरकार से होता है। मस्तिष्क रेखा में रोमांच (नीचे की ओर) == मस्तिष्क रेखा से छोटी-छोटी शाखाएं हृदय की ओर न जाकर नीचे की ओर जाती हैं। यदि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे कोई भी दोष हो तो अत्याधिक दुष्प्रभावकारी होता है, इस प्रकार, ये नीचे जाने वाली रेखाएं भी मस्तिष्क रेखा का दोष मानी जाती हैं और शनि की उंगली के नीचे निकलती हों तो व्यक्ति के पैर की एडी में दर्द रहता है। जिसका कारण पैर की हड्डी बढ़ना होता है। ऐसे व्यक्तियों को नमक अधिक पसन्द होता है जिसके कारण पैर की हड्डी बढ़ जाती है (चित्र-83)। 159 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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