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________________ हाथ का विस्तृत ज्ञान हस्त रेखा विद्वानों का कार्य हाथ से आरम्भ होता है, सबसे पहले हाथ ही उनकी दृष्टि में आता है। अतः हाथ का भली प्रकार परीक्षण व निरीक्षण तथा समुचित ज्ञान उनके लिए अत्यावश्यक है। हाथ का आकार, लम्बाई, चौड़ाई, आकृति, रंग, उसका झुकाव, हाथ के अंगों की बनावट आदि सभी कुछ सोचकर अपना कार्य आरम्भ करता है। सबसे पहले हाथ के आकार पर ध्यान देना आवश्यक है। हाथ सात प्रकार के होते हैं। ये सात प्रकार उस समय होते हैं जब किसी अन्य प्रकार का मिश्रण न हो। मानसिक मनोवृत्ति वाले व्यक्ति के कार्य का दृष्टिकोण देखने के लिए हाथ के विषय में जानना अति आवश्यक है। हम इस अध्याय में हाथ के मुख्य प्रकार तथा उसके अन्य लक्षणों के विषय में विचार करेंगे। पाठकों को भी यह राय दी जाती है कि भली-भांति हाथ का प्रकार समझकर ही फलादेश आरम्भ करें, क्योंकि एक ही रेखा अलग-अलग प्रकार के हाथों में अलग-अलग प्रकार से फल देती है। समकोण हाथ में जो रेखा एक फल देगी, वही रेखा चमसाकार हाथ में दूसरा फल देती है, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों में मानसिक मनोवृत्ति, आदत, पसन्द तथा वातावरण अलग होते हैं। इस प्रकार हाथ के प्रकार के विषय में विस्तार तथा निश्चित रूप से जान लेना बहुत आवश्यक है। हाथ कुल मिलाकर चार उंगलियों- तर्जनी (अंगूठे के पास की उंगली) मध्यमिका (दूसरी), अनामिका (तीसरी), कनिष्ठा (चतुर्थ या छोटी), अंगूठे तथा हथेली को मिलाकर कहा जाता है। उपरोक्त उपांगों की बनावट (मोटाई, लम्बाई, गठन) के अनुसार ही फल बताया जा सकता है। यह माना जाता है कि हाथ जितना चौड़ा, भारी, मोटा, सुन्दर, गुदगुदा, चिकना या सुडौल होता है, उतना ही उत्तम होता है, तथा व्यक्ति भाग्यशाली होता है। इसके विपरीत पतला, काला, भद्दा तथा टेढ़ा-मेढ़ा हाथ न्यूनाधिक समस्याओं तथा दुर्भाग्य का लक्षण है (चित्र-1)। तर्जनी (अंगूठे के पास की उंगली)- पहली उंगली जिसे तर्जनी कहते हैं, बृहस्पति की उंगली कहलाती है। इसके नीचे का उभार बृहस्पति कहलाता है। यह जीवन रेखा से ऊपर तथा उंगलियों की ओर होती है। माध्यमिका (दूसरी उंगली)- दूसरी उंगली शनि की उंगली कहलाती है। इसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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