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________________ ( xlviii ) ३४९x१० नैति तैरेव...(?) नति तैरेव सञ्चः । यह छाया संस्कृत टीका के आधार पर दी गई है। ४२१x१ रूपस्य हितक्लेशस्य रूपस्य हितक्लेशस्य (हृतक्लेशस्य) (परिवर्तित पाठ) ४९६४८ बहले तमोऽधकारे रमितप्रमुक्तयोः श्वश्रूस्नुषयोः । सममेव संगती (मिलितो) द्वयोरपि" (?) हस्तौ ॥ बहले तमोऽन्धकारे रमितप्रमुक्तयोः श्वश्रस्नुषयोः (साश्रु सोष्णयोः)। सममेव संगती द्वयोरपि शरव्हे । (सार दहे) हस्तौ (परिवर्तित एवं पूरित पाठ) ५५९४२ आर्या माकन्दनिधीन किमपि कुमारीः शिक्षयति । आर्या माकन्दनिधीनां किमपि कुमारीः शिक्ष यति । (परिवर्तित पाठ), ६२४४३ कर्णेन कर्णवहनं वानरसंख्यं च हस्तेन । । कर्णेन कर्णवधनं (कर्णवहन) वानरसंख्यां (वानरसंख्यं वा) च हस्तेन । (परिवर्तित पाठ) ६३७४१ दत्तपुष्पयानेन दत्तपुष्णदानेन (दत्तपुष्पयानेन) (परिवर्तित पाठ) ६४१४३ ज्वलयतीव सुधया सर्वाङ्गम् ज्वलतीव क्षुधया सर्वाङ्गम् (परिवर्तित पाठ) प्राकृत ग्रन्थ परिषत् द्वारा प्रकाशित वज्जालग्ग में बालासिलोयवज्जा का केवल मूल प्राकृत पाठ ( अंग्रेजी अनुवाद सहित ) उपलब्ध है। इस संस्करण में भी परिशिष्ट क के अन्त में उसका मूल पाठ (सानुवाद) ही छपा है । अन्य वज्जाओं के समान उसकी भी संस्कृत छाया होनी चाहिये थी। परन्तु ग्रन्थ छपते समय इस बात पर ध्यान नहीं गया। अध्येताओं के सोकर्य के लिये उस वज्जा की स्वरचित संस्कृत छाया दे रहा हूँबालासिलोयवज्जा (बालाश्लोकवज्या) तव तुङ्गपयोधरविषमदुर्गमध्यस्थितः कुरङ्गाक्षि । करिष्यति पुनरिव नूनं हरेण सह विग्रहमनङ्गः ॥१॥ अपहस्तितभयप्रसरो नूनं प्रस्ताक्षि मन्मथ इदानीम् । हरयुद्धसहो वर्तते तव तुङ्गपयोधरारूढः ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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