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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा.३ नीपापीडे मो वा ॥ ५७ ॥ - नीप और आपीड शब्दोंमें प का म विकल्पसे होता है। उदा.नीमो नीवो । आमेडो आवेडो ॥ ५७ ।। रल् पापद्धौं ॥ ५८ ।। पापर्द्धि शब्दमें प का र होता है। (सूत्रके रल् में) ल् इत् होनेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता । उदा.-पारद्धी पापर्द्धिः (यानी) मृगया ।।५८ ।। प्रभूते वः ।। ५९ ।। प्रभूत शब्दमें प का व होता है। उदा.-बहुत्तं ।। ५९ ॥ फस्य भहाँ वा ।। ६० ।। ____ असंयुक्त (अस्तोः), अनादि (अखोः), स्वरके आगे होनेवाले फकारके, वाङ्मयमें जैसा दिखाई देगा वैसा, व्यवस्थित विभाषासे, भकार और हकार होते हैं। उदा.-क्कचित् (फ का) भ होता है ।-रेफः रेभो । शिफा सिमा । कचित् (फ का) ह होता है-मोत्ताहलं मुक्ताफलम् । कचित् (फ के भकार और हकार) दोनों होते हैं-सफलम् सहलं सभलं । शेफालिका सेहालि आ सेभालिआ। शफरी सहरी सभरी। गुम्फति गुभइ गुहइ । (फ) असंयुक्त होनेपरही (यह वर्णविकार होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.-पुप्फं पुष्पम् । (फ) अनादि रहनेपरही (यह वर्ण विकार होता है, अन्यथा नहीं।) उदा. फणी । (फ) स्वरके आगे होनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.-गुम्फइ। (फ के ये विकार) प्रायःही होते हैं। (इसलिए कचित् नहीं होते।) उदा.-कसणफणी कृष्णफणी ।। ६० ॥ बो वः ।। ६१ ॥ असंयुक्त, अनादि, स्वरके आगे होनेवाले बकारका व होता है। उदा.-शबलः सवलो । अलाबुः अलावू ॥ ६१ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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