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________________ त्रिविक्रम - प्राकृत व्याकरण निभृतम् । परहुअं परभृतम् । विउअं विवृतम् । संवुअं संवृतम् । णिउअं निर्वृतम् । णिव्वुई निर्वृतिः । णिउत्ती निवृत्तिः । पउत्ती प्रवृत्तिः । पाउसो प्रावृट् । वुत्तन्तो वृत्तान्तः । वुन्दं वृन्दम् । वृंदावणं वृन्दावनम् । पुहई पृथिवी । वुद्धो वृद्धः । उज्जू ऋजुः । मुणालं मृणालम् । पुट्टो पृष्टः । पउट्ठो प्रवृष्टः । वुट्ठी वृष्टिः । परामुट्टो परामृष्टः । भाउओ भ्रातृकः । पिउओ पितृकः । नामाउओ जामातृकः | माउआ मातृका । इत्यादि ॥ ८० ॥ । ३६ गौणान्त्यस्य ।। ८१ ॥ (समासमें) गौण पदका जो अन्त्य ऋ, उसका उ होता है | उदा. - माउमंडलं मातृमण्डलम् | माउहरं मातृगृहम् । पिउहरं पितृगृहम् । माउसिआ माउच्छा मातृष्वसा । पिउसिआ पिउच्छा पितृष्वसा । पिउवणं पितृवनम् । पिउई पितृपतिः ॥ ८१ ॥ इदुन्मातुः || ८२ ॥ (समासमें) गौण होनेवाले मातृशब्द में ऋ के इ और उ होते हैं। उदा.माइहरं माउहरं मातृगृहम् । कचित् (मातृ शब्द) गौण न हो तो भी (ऋ के इ और उ होते है ।) उदा.- माईणं माऊणं मातृणाम् ॥ ८२ ॥ वृष्टिपृथङ्मृदङ्गनप्तृकवृष्टे ।। ८३ ।। (इस सूत्र में १.२.८२ से) इत् और उत् शब्दों की अनुवृत्ति है । वृष्टि, इत्यादि शब्दों में ऋ के इ और उ होते है । उदा. - विट्ठी वुट्टो वृष्टिः । पिहं पुहं पृथक् । मिगो मुअंगों मृदङ्गः । णत्तिओ णत्तुओ नप्तृकः । विट्टी वुट्टो वृष्टिः ॥ ८३ ॥ तु बृहस्पतौ ।। ८४ । बृहस्पति शब्द में ऋ के इ तथा उ विकल्पसे होते है | उदा. -बिहफई. बुप्फई बहप्फई ॥ ८४ ॥ उदूदोल मृषि || ८५ ॥ मृषा शब्दमें ऋ के उ, ओ और ऊ होते है । (सूत्र के उदूदालू में) लू इतू होनेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता । उदा. - मुसा मूसा मोसा । मुसावाओ मोसावाओ मृषावादः ॥ ८५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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