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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय.......{121} पृथ्वीकाय पर्याप्त, बादर जलकाय पर्याप्त, बादरअग्निकाय पर्याप्त, बादर वायुकाय पर्याप्त और बादर वनस्पतिकाय प्रत्येक शरीरी पर्याप्त जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, सभी कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा इन जीवों के मिथ्यात्व गुणस्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है । बादर पृथ्वीकाय लब्धि अपर्याप्त बादर जलकाय लब्धि अपर्याप्त, बादर तेजस्काय लब्धि अपर्याप्त, बादर वायुकाय लब्धि अपर्याप्त और बादर वनस्पतिकाय प्रत्येक शरीरी लब्धि अपर्याप्त जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा इन जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । सूक्ष्म पृथ्वीकाय, सूक्ष्म जलकाय, सूक्ष्म वायुकाय, सूक्ष्म वनस्पतिकाय, सूक्ष्म निगोद जीव और उनके ही पर्याप्त तथा अपर्याप्त जीवों का काल सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों के काल के समान जानना चाहिए। वनस्पतिकायिक जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का काल एकेन्द्रिय जीवों के काल के समान है । निगोद के जीव, सभी जीवों की अपेक्षा. तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा निगोद जीवों में मिथ्यात्व गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण और उत्कृष्ट काल ढाई पुद्गलपरावर्तन परिमाण है । बादर निगोद जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का काल बादर पृथ्वीकाय के जीवों के समान है । त्रसकाय और त्रसकाय पर्याप्त में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा त्रसकाय और त्रसकाय पर्याप्त जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । त्रसकाय मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों का उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक दो हजार सागरोपम और त्रसकाय पर्याप्त जीवों का उत्कृष्ट काल पूरे दो हजार सागरोपम परिमाण है । सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक त्रसकाय और त्रसकाय पर्याप्त जीवों का काल सामान्य कथन के समरूप जानना चाहिए। त्रसकाय लब्धि अपर्याप्त जीवों का काल पंचेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त जीवों के समान है। योगमार्गणा में पाचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवों में मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत और सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा उपर्युक्त गुणस्थानवी जीवों में इन गुणस्थानों का जघन्य काल एक समय है । एक जीव की अपेक्षा पांचों मनोयोगी तथा पांचों वचनयोगी मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत और सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों में इन गुणस्थानों का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । एक जीव की अपेक्षा पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों का काल सामान्य कथन के समरूप जानना चाहिए। पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती जीव सभी जीवों की अपेक्षा, एक समय मात्र होते है। पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों का उत्कृष्ट काल पल्योपम का असंख्यातवें भाग हैं। एक जीव की अपेक्षा पांचों मनोयोग और पांचों वचन योग वाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों का जघन्य काल एक समय है । एक जीव की अपेक्षा पांचों मनोयोग और पांचों वचनयोगवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी, चारों उपशामक और क्षपक सभी जीवों की अपेक्षा, जघन्य से एक समय होते है । सभी जीवों की अपेक्षा, इन जीवों का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । एक जीव की अपेक्षा इनका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । काययोगियों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा काययोगी मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों का उत्कृष्ट काल अनन्त काल रूप असंख्यात पुद्गल परावर्तन है । सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर सयोगीकेवली गुणस्थान तक काययोगियों का काल मनोयोगियों के समान हैं। औदारिककाययोगियों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा औदारिककाययोगी मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है। सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर सयोगीकेवली गुणस्थान तक औदारिककाययोगियों का काल मनोयोगी के समान है। औदारिकमिश्रकाययोगियों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते है। एक जीव की अपेक्षा औदारिकमिश्र काय योगी मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीवों का जघन्य काल तीन समय कम Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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