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________________ १०. मित्र-मिलन : सूरि-संकेत [ विमलकुमार अत्यन्त भाव-विह्वल होकर भगवान् की प्रार्थना कर रहा था। मैं पास ही खड़ा था और मेरे पीछे रत्नचूड एवं ग्राम्रमञ्जरी अपने परिवार के साथ शान्ति से खड़े स्तुति सुन रहे थे। पूरे मन्दिर में दिव्य शान्ति और दिव्य गान प्रसरित हो रहा था। ऐसे अतिशय आनन्द के इस प्रसंग पर विमल के मुख से स्तुति के शब्द भाव, रस, एकाग्रता और प्रेम-पूर्वक निकल रहे थे। आखिर स्तुति पूर्ण हुई। ] मित्र-मिलन प्राणियों के नाथ भगवान् की सुन्दर मानसिक सद्भावपूर्ण स्तुति के पश्चात् विमल ने पंचांग प्रणाम किया । उसकी मधुर वाणी से अत्यन्त हर्षोल्लसित और रोमांचित विद्याधर रत्नचूड ने मन में अत्यधिक सन्तुष्ट होकर कहा- 'हे धैर्यवान ! आपने भवभेदक भगवान् की अतिशय सुन्दर भावपूर्ण स्तुति की है।' इस प्रकार कहता हुआ रत्नचूड विमल के सन्मुख पाया और पुनः कहने लगा- 'हे महाभाग्यवान बन्धु ! त्रैलोक्यनाथ भगवान् पर आपकी इतनी अधिक दृढ़ भक्ति है, आप वास्तव में भाग्यशाली हैं, कृतकृत्य हैं और आपका इस भूमण्डल पर जन्म सफल है । हे नरोत्तम ! यह निश्चित है कि आप वास्तव में संसार से मुक्त हो ही गये हैं, * क्योंकि प्राणी को एक बार चिन्तामणि रत्न की प्राप्ति होने के बाद वह कभी दरिद्री नहीं होता, अर्थात् उसमें फिर से दरिद्री बनने की योग्यता ही समाप्त हो जाती है ।' [५१-५५] विद्याधराधिपति रत्नचूड ने अत्यन्त मधुर वाणी से विमल का अभिनन्दन किया और तत्पश्चात् भक्ति पूर्वक आदिनाथ भगवान् को नमस्कार किया । तदनन्तर विमल ने रत्नचूड को नमस्कार किया और उसने भी स्नेह-पूर्वक विमल को प्रणाम कर पादर-पूर्वक उसे शुद्ध भूमि पर अपने पास बिठाया । आम्रमञ्जरी भी अभिवादन नमस्कार आदि कृत्य पूर्ण कर वहाँ आकर उनके पास बैठ गई । सब विद्याधर भी मस्तक झुकाकर भूमितल पर बैठ गये । दोनों ने एक दूसरे के स्वास्थ्य के बारे में कुशल समाचार पूछे और क्षेमकारी संवाद प्राप्त कर प्रसन्नता-पूर्वक दोनों बातें करने लगे। [५६-५६] • पृष्ठ ५.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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