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________________ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे मं. बु. गु. शु. १२ ४ श उपरना लग्ननी ग्रहव्यवस्था आ प्रमाणे छे मकरनो चन्द्र दक्षिणना भागमां पडयो छे. ते उपर बुध, गुरु अने शुक्रनी त्रिपाद दृष्टि छे, पण साथे ज मंगल अने शनि एने पूर्णदृष्टिथी जुए छे एथी वास्तुभूमिमां धन निधान तो नथी. हवे ए वास्तुक्षेत्रमा शल्यनो विचार करीये. सूर्य राहुनी साथे छे अने मंगलथी शनि पूर्णदृष्ट छे. आ स्थिति शल्यनो संभव सूचवे छे अने ते पण दक्षिण दिशाना भागमां होवानो संभव छे. एम छतां सूर्य ए बुध, गुरु अने शुक्रवडे पण त्रिपाददृष्टिए दृष्ट छे, एथी आ भूमिमा शल्यनो निश्चित संभव तो नथी. छतां शंकितस्थानमां शल्यनी तपास करवी योग्य गणाय। प्रश्नलग्नद्वारा धन अथवा शल्य जाणवानी रीति ज्योतिर्निबन्धकारे पण एज आपी छे, छतां एमां भूमिना ४ भाग पाडी राशिओ लखवानी वात नथी, पण प्रचलित लग्नकुंडलीने ग्रहो उपरथी जोवानुं विधान छे. ते आ प्रमाणेयस्मिन् भागे सौम्या, गृहस्य तद्रव्यमादिशेत् तत्र । पापा यस्मिन् भागे, तस्मिन् शल्यं विनिर्देश्यम् ॥२३॥ भा०टी०-कुंडलीना जे दिशाभागमां सौम्यग्रहो पडया होय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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