SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपाश्रय अने त्यां पडी रहेला जुना चोपडा पानां के चापानीयां बधानु बारीकरीते निरीक्षण करता अने तेमांथी जेने लोको नकामु कही फेकी देवा जेवु मानता तेमाथी ते इतिहास परंपरा अने तत्त्वज्ञाननु नवनीत शेाधी काढता. पू. प. कल्याणविजयजी गणि. सिंहनी पेठे निडर प्रकृतिना हता. ते काइनी षण आभा प्रतिभा लागवग आडंबर के खाटा तेजथी अंजाता न हता. तेमने जे साचु लागे ते कहेतां जे काइ सहन करवु पडे ते सहन करवा हमेशा तत्पर रहेता. वधुमां पोते मानेल विचारेल अने प्रचारेल वात बराबर नथी, नुकशान करता छे ते ख्याल आवे तो तेना स्वीकार करवामां कीर्ति यश के महत्ता जरापण आडे लाब्या वगर स्पष्टपणे कहेता के में कयुछे, विचार्यु छे पण हवे मने लागे छे के आ करवा जेवु नथी तो तुर्त ते करवामां अचकाता नहाता पू. प. कल्याणविजयजी गणिनु नाम में घणा वर्षाथी समर्थ विद्वान इतिहासज्ञ तरीके सांभळेलु पण तेमनो प्रत्यक्ष परिचय तो तेओ ज्यारे वि. सं. १९९४ मां विद्याशालाए आव्या त्यारे थयो. परंतु गाढ परिचय तो तेमना कल्याणकलिका भाग १-२ ना प्रकाशनमां थयो अने ते परिचय तेमना कालधर्म सुधी सतत रह्यो एटलुज नहि पण तेमनी पासे तेमणे एकठा करेल प्राचीन साहित्यना आंखनी तकलीफना कारणे अणशाधेल अने अणप्रकाशित पाटलां मारे त्यां मोकल्यां अने प्रकाशित करवानुकात्यारे हुतेमना अति विश्वसनीय वन्यो. पाछळना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy