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________________ प्रथम - खण्डः ] प्राथमिकदर्शने शुभभूमि- शुभ - जे भूमि समतल होय अथवा तो दक्षिण पश्चिमनी तरफ ऊंची होय, जे मधुरस्वादवाली होय, वर्णमां जे सफेद अने एकवर्णवाली होय, सर्प, नोलियो अथवा उंदर बिलाडी जेवा जातिवैरवाला जीवो ज्यां स्नेहभावधी साथ रहेता होय, ते भूमि उपर प्रहार करवाथी हाथी, घोडा, वीणा, वांसली, समुद्र अने नगाराना शब्द जेवो अवाज अंदरथी आवतो होय, ज्यां सुगंधि पुष्पनां वृक्षो ऊगेला होय, ज्यां बिल्ली, निंब, निर्गुडी, आंबो अने सेवन आदि शुभ वृक्षो ऊगेला होय, ज्यां जल घणुं ऊंतुं होय, फूटेल बर्तनोना ठीब, कांठला, हाडकां, पथरा, उधेड़ना राफडा, कोलसा, सुकायेला वृक्षोनां ठूंठा, भस्म, झीणी रेती के नदीनी वेल जेवी बेल ज्यां न होय ते भूमि सर्व वर्णना मनुष्योना घरो तथा देवमन्दिरोने माटे शुभ जाणवी. अशुभभूमि राखोडी, कोलसा, फुटेल माटीना ठामना ककडा, हाडकां, धाननां फोतरां, केश, विष, पथरा, उंदरनां दरो, उधेइना राफडा, वेकरथी भरपूर होय, अथवा ज्यां खोदवाथी पूर्वोक्त पदार्थों पैकी कोइ पदार्थ नीकळतो होय, जे भूमि खारी होय, बीज के घास ज्यां न ऊगतां होय, फाटनारी, रूखी, सूखी अने नीचेथी पोकल होय, कांटाला अने फलहीन झांखरोवाली, मांसभक्षी पक्षिओनां रहेठाणवाली, कृमिकीटकाकुल, ज्यां वादित्रादिना जेवा अव्यक्त शब्दो संभलाया करता होय अने जे भूमिमां सारी रीते पकावेल भोज्यान्न पाणी जल्दी बगडी जतां होय, ते भूमि कोहने पण निवास योग्य होती नथी. त्यां को घर के देवालयादि बनाववां जोइये नहि. विशेषपरीक्षा उपर्युक्त दार्शनिक परीक्षा उपरान्त भूमिनी विशेष परीक्षा पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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