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________________ लग्न-लक्षणम् ] अथवा जन्मलग्नथी अष्टमराशिनुं के बारमीराशिनुं लग्न यात्रादि सर्व कार्योमा वर्जवं, पंडितजनोए आ प्रमाणे राशिशुद्धि बुद्धिवडे अवश्य विचारवी. कया ग्रहो कया स्थानोमां न जोइये ? त्याज्या लग्नेऽब्धयो मन्दात्, षष्ठे शुक्रेन्दुलग्नपाः । रन्धे चन्द्रादयः पञ्च, सर्वेऽस्तेऽब्जगुरू समौ ॥६६॥ प्रायः शुभा न शुभदानिधनव्ययस्था, घीधर्मरिप्फधनकेन्द्रगताश्च पापाः। सर्वार्थसिद्धिषु शशी न शुभो विलग्ने, सौम्यान्वितोऽपि निधनं न शिवाय लग्नम् ॥६६९॥ भा०टी०-लग्नमां शनिथी ४ ग्रहो वर्जवा, एटले शनि रवि सोम मंगल आ ४ ग्रहो लग्नमा त्यागवा, छट्ठा स्थानमा शुक्र चंद्र लग्नपति वर्जवा, आठमे चंद्र आदि ५ अर्थात् चंद्र मंगल बुध गुरु शुक्र ए वर्जवा, सातमे सर्वे वर्जवा छतां चंद्र के गुरु अस्तमां होय तो सम गणाय छे अशुभ नथी, प्राये करीने आठमे बारमे रहेला शुभग्रहो शुभफल आपता नथी अने पांचमे नवमे बारमे बोजे पहेले चोथे सातमे अने दशमे स्थाने रहेल पापग्रहो शुभदायक नथी, चंद्रमा सर्व कार्योंमा लग्नमां रहेल सारो नथी, भले ते सौम्यग्रहयुक्त पण होय छतां लग्नमां वर्जयो अने लग्न अथवा राशिथी आठमी राशिनु लग्न कदापि शान्तिदायक होतुं नथी. क्रूरकर्तरीदोष लग्नेऽस्यपृष्ठाग्रगयोरसाध्वो, सा कर्तरीस्यादृजुवक्रगत्योः। तावे व शीघ्रौ यदि वक्रचारौ, न कर्तरी चेति पितामहोक्तिः ॥६७० ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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