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________________ ५०८ [कल्याणकलिका-प्रथमखण्ड अशुभयोग कोष्ठकसो मं | बु गु शु श योग वारें नक्षत्र |वि | पूषा|ध | रे रो | पुष्य उफा उत्पात नक्षत्र | अनु| उषा| श | अ | मृ आरले ह | मृत्यु नक्षत्र | ज्ये अभि | पूभा भ आर्द्रा मचि | काण - - नक्षत्र म | वि आद्रा मू| क| रो| ह यमघण्ट क्रकच वज्रनक्षत्र | भ ! चि | उषा| ध उफा ज्ये | रे मुसल तिथि १२ | ११ | १०| ९ | ८ | ७ | ६ | क्रकच अशुभयोगोनो परिहार मृत्यु-क्रकच-दग्धादी-निन्दौ शस्ते शुभाजगुः । केचिद्यामोत्सरं चान्ये, यात्रायामेव निन्दितान् ॥४५४॥ भा०टी०-मृत्यु, क्रकच, दग्ध आदि अशुभयोगो चन्द्र शुभ होय तो अशुभ नथी एम केटलाक विद्वानो कहे छे ज्यारे बीजाओ कहे छे के मृत्यु क्रकचादि योगो (दक्षिण उत्तर दिशाए) यात्रामा ज अशुभ गणाय छे. अयोगे सुयोगोपि चेत्स्यात्तदानीं, कुयोग निहत्यैष सिद्धिं तनोति। परे लग्नशुद्धया कुयोगादिनाशं, दिनार्दोत्तरं विष्टिपूर्व च शस्तम् ॥४५५॥ भा०टी०-कुयोगमा शुभयोगो मेगा होय तो कुयोगनो नाश करी सुयोग कार्य सिद्धि करे छ, अन्य आचार्यों कहे छे के लग्नशुद्धिथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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