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________________ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्ड भान्येकरेग्वास्थितयोः, सूर्याचन्द्रमसोमिथः। एकार्गलो द्रष्टिपात-श्चाभिजिवर्जितानि वै ॥३५३।। भा०टी०-नक्षत्रो अभिजित् रहित लखवां एक रेखास्थित सूर्य चन्द्रनो परस्पर द्रप्टिपात तेनुं नाम ' एकागल' छे. कश्यप पण अभिजित् रहित नक्षत्रो कहे छे, एकागलो द्रष्टिपात-श्वामिजिदहितानि वै । भा०टी०-खाजूंरिक चक्रमा परस्पर द्रष्टिपात थवो ते एकागंल योग छे. अने खाजूंरिक चक्रमां नक्षत्रो अभिजित् रहित लेवां, आ सम्बधमां अभिजितने अंगे लखे छे. लांगले कमठे चक्रे, फणिचक्रे त्रिनाडिके। अभिजिद् गणना नास्ति, चक्रे खाजूरिके तथा ॥३५४॥ तारायां ग्रहचक्रे च, संघाते लोहपातके । अभिजिद् गणना नास्ति, लाते पाते च कण्टके ॥३५५॥ __ भा०टी०-हल चक्रमां, कूर्म चक्रमां, त्रिनाडिक फणिचक्रमां तथा खाजूंरिक नक्रमा अभिजित्नी गणना नथी. ___ तारामां, यहचक्रमां, संघातचक्रमां, लोहपातमा, लत्तामां, पातमा अनेटकमां पण अभिजित्नी गणना नथी. __एकार्गल योगनो विषयविगहे प्रथमे क्षौरे, सीमन्ते कर्णवेधने । व्रतेऽन्नप्राशने चैव, खार्जूरं परिवर्जयेत् ॥३५६।। भा०टी०-विवाहमां, पहेला क्षौरमां, सीमन्तमा, कर्णविंधवामां व्रतग्रहणमा, अन्न प्राशनमां, एकागल दोष वर्जवो, एकागलयोगर्नु फल नीचे प्रमाणे छे. खरकरतुहिनांशोष्टिसंपातजातस्त्वनलमयशरीरश्चोगिरन् वह्निसंघान् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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