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________________ ક૭૮ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे बनशे, आडी कोइपण एक रेखाना बे छेडाओ उपर सामसामे चन्द्र सूर्य आवतां तेमनो एकवीजा उपर द्रष्टिपात थवो तेनुं नाम 'एकागल' योग छ, उर्ध्व रेखाए कयुं नक्षत्र धरीने बाकीनां नक्षत्रो खाजूंरिकमां धरवां ए विषे वसिष्ठ कहे छे अन्त्यातिगण्ड परिघ व्यतिपात पूर्वव्याघात गण्ड वरशूल महाशनिषु । चित्रानुराधपितृपन्नगदस्त्रभेषु, सादित्य मूल शशि सूरिषु मूनि भेषु॥३५२॥ भाल्टी-जे दिवसे वैधृति, अतिगण्ड, परिघ, व्यतिपात, विष्कुम्भ, व्याघात, गण्ड, शूल, वज्र, आ ९ अशुभ योगो पैकीनो कोइ अशुभयोग होय तो एकागलनी तपास करवी, वैधृति होय तो चित्रा, अतिगण्डमां अनुराधा, परिघमां मघा, व्यतिपातमां आश्लेषा, विष्कुंभमां अश्विनी, व्याघातमा पुनर्वसु, गण्डमां मूल, शूलमां मृगशिर अने वज्रमा पुष्य नक्षत्र खाजूंरिक चक्रना मस्तके उर्ध्व रेखा उपर लखी ते पछीना नक्षत्रो अनुक्रमे आडी रेखाओ उपर उपरथी नीचे लखवां, बीजी तरफ नीचेथी उपर लखता जq अने २७ नक्षत्रो पूरा करी सूर्य चन्द्र जे जे नक्षत्र उपर होय त्यां लखवा, जो सूर्य चन्द्र एक रेखामां सामसामे आवता होय अने नक्षत्रोना बेधक चरणो उपर रहीने एक बीजा उपर द्रष्टिपात करता होय तो ते दिवसे ते चन्द्र नक्षत्र शुभ कार्यमा अवश्य वर्जq । एकागल योग दर्शक खारिक चक्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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