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________________ [ कल्याण- कलिका - प्रथमखण्डे भा०टी० - शुक्रनो बाल्य वार्द्धक्य काल वसिष्ठना मते ५ दि बसनो, शौनकना मते १ दिननो, गर्गना मते ३ दिननो अने यवनाचायना मते ५ मुहूर्तनो छे, जे वर्जवो जोईये. ए अंगे वसिष्ठ कहे छेके शुक्रे चास्तंगते जीवे, चन्द्रे चास्तमुपागते । तेषां वृद्धौ च बाल्ये व शुभकर्म भयप्रदम् ।। २८ ।। वृद्धत्वमिन्दोस्त्रिदिनं दिनार्द्ध, ३६८ बालत्वमस्तत्व महर्द्वयं च ॥ अस्ते विधौ मृत्युमुपैति कन्या, बाल्येऽन्यसकता विधवा च वृडे ||२९ ॥ मा०टी० - शुक्र गुरू चन्द्रना अस्तमां तथा तेमना वाद्धर्धक्य के बाल्यकालमा शुभकार्य करं भयकारक छे. चन्द्रनुं वृद्धत्व ३ दिवसनुं तेनुं बाल्यत्व अर्ध दिवस अने अस्तत्व २ दिवस होय छे. चन्द्रना अस्तमां परणनारी कन्या मृत्यु पामे चन्द्रना बाल्यमां परणनारी परपुरुषमां आसक्त थाय अने वाक्यमां परिणीता विधवा थाय. गुरु-शुक्रास्तापवादे गर्ग : freeयाने गृहे जीर्णे, प्राशने परिधानके । वधू प्रवेशे मांगल्ये, न मौढयं गुरुशुक्रयोः ॥ ३० ॥ मा०डी० - नित्यनी मुसाफरीमां, जूना घरना प्रवेशमां, अभ प्राशनमां, वस्त्र परिधानमां, वधू प्रवेशमां तथा तात्कालीक मांगल्य कार्यमा गुरु शुक्रास्तनो दोष नथी. गुरुवक्रत्वदाष- गुरु वकत्व अंगे शौनक, लल्लाचार्य आदि प्राचीन ग्रंथकारोए अमुक समय पर्यंत ते वर्जवानो निर्देश कर्यो छे. तल कहे छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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