SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रासाद-लक्षणम् ] २७७ हिता अने प्रतिमामान-लक्षण आपसमां कईक मले छे. के जे जयसंहितादिथी घणा जुदा पडे छे. केटलीक उपयोगी बाबतो निकटना ग्रन्थमां न होइ दूरना आधारे लेवी पडे तेवी होय तो ते बे ग्रन्थो वच्चेनुं तारतम्य विचारीने तेमां आवश्यक जणातुं परिवर्तन करीने तेनो स्वीकार करी शकाय. उदाहरण तरीके बृहत्संहितामां घणा खरा अंगोपांगोमां दैय ओछु माने छे. ज्यारे विस्तारमा महत्त्वनो भेद धरावती नथी. आपणे कोइ अंगप्रत्यंगना दैर्ध्यनो अंक लेवो हशे तो कंईक वधारीने ज लेवो पडशे जेथी आपणा अभीष्टग्रन्थनी साथे मली जाय. २. कोष्ठकोक्त मानांकोमा केटलाक मानांको एक बीजाथी एटला बधा भिन्न पडी जाय छे के जाणे बे वस्तुओ ज जुदी होय. बे चार उदाहरण जोईये. ____(१) सर्व प्रथम 'उष्णीष' कोष्ठकमां ज तमने गडबड मालम पडशे 'ज' ग्रंथ ६ अने 'अ' ग्रंथ १ नो ज निर्देश करे छे 'प्र' ग्रंथ ८ लखे छे, ज्यारे बाकीना ४ ग्रन्थो कई लखताज नथी. आ गडबडनुं समाधान ए छे के 'ज' ग्रन्थकारे 'केशान्तमस्तक 'नो ४ नो आंक अने उष्णीपनो २ नो आंक सामेल गणी 'उष्णीष' ६ आंगलनुं लखी दीधुं छे, जुओ तेनी नीचेनो 'ज' नो केशान्तमस्तकनो कोठो खाली छ, वास्तवमां तो '२ उष्णीष अने ४ केशान्तमस्तक' लखवू आवश्यक हतुं, कारणके आ ग्रन्थ श्वेताम्बर संप्रदाय मान्य प्रतिमार्नु निरुपण करे छे. ए संप्रदायनी प्रतिमाओने उष्णीष (शिखा) आंगल २ नुं अने केशान्तमस्तक ४ नुं मानेलं छे. बीजी वात 'अ' ग्रन्थे उष्णीष १ आंगलनुं लख्युं छे, दिगम्बर संप्रदायनी प्रतिमाओने प्रायः १ आंगलनु उष्णीष अने ३ आंगलन केशान्तमस्तक जोवामां आवे छे. आथी जणाय छे के दिगम्बर प्रतिमाओन निर्माण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy