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________________ प्रासाद-लक्षणम् ] २२५ पुष्पकः सर्वत्रिपदः, परित्यक्तचतुष्किकः । एवं तु युक्ता विज्ञेया, मण्डपाः पुष्पकादयः ॥५७३॥ भा०टी०-विजयना पाछला भागे पण त्रणपदो पाडतो 'श्रीवत्स' अने श्रीवत्सने आगले भागे एक पद वधारता ते मंडपर्नु 'जय' एवं नाम निष्पन्न थाय छे, जयना आगला पदना २ थांभलाना ४ थांभला करवाथी 'गजभद्र' मंडप बने छे, गजभद्रनी आगल पद वधारवाथी बुद्धि संकीण' अने आगल पाछल एक एक पद वधारतां 'कौशल्य' मंडप बने छे, कौशल्यना पाछला पदने हटावी बने बाजुमां १-१ पद वधारवाथी ' मृगनन्दन' मंडप बने, मृगनन्दनना पाछला भागे पद वधारीए तो 'सुप्रभ' नामक सर्वेच्छापूरक मंडप बने, सुप्रभना आगला भद्रे त्रिपद पाडीने पुष्पभद्र अने सर्वदिशाओमां ३-३ पदो पाडीने 'पुष्पक ' मंडप करवो, एम उपर बतावेली युक्तिवडे पुष्पकादि मंडपो जाणवा. चतुःषष्टिस्तम्भयुक्तः, पुष्पको नाम विश्रुतः। द्वि-द्वि स्तम्भत्यागयुक्त्या, पुष्पाद्याःसप्तविंशतिः॥५७४॥ पुष्पकाद्याश्च युक्ताः स्युः, समैर्वा विषमैस्तलैः। अनुक्रमयुक्तमाये, सप्तविंशतिमण्डपाः ।।५७५॥ समैः क्षणैः समैः स्तम्भैः, समैश्चापि ह्यलिन्दकैः । विषमे तु तुलापट्टे, गृढे चन्द्रावलोकना ॥५७६॥ निगूढे नृत्ये आख्याताऽधस्ताद् भद्रावलोकना। चन्द्रावलोकना जालैः कार्याः कर्णानुगास्तथा ॥५७७॥ निःस्तम्भा भित्तिका भित्ते-रिष्टांशा च चतुष्किका। स्तम्भेषु युग्मस्तम्भाश्च, मूलसूत्रसमुद्भवाः ॥५७८॥ भा०टी०-६४ स्तंभ युक्त मंडप 'पुष्पक' नामथी प्रख्यात छे, बेबे स्तंभ ओछा करतां एकंदर पुष्पकादि २७ मंडपो बने छे. तेने स्पष्ट समजवा माटे निचेनी आकृतिओ उपयोगी बनशेः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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