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________________ २०७ प्रासाद-लक्षणम् ] १३ इन्द्रनीलषोडशांशे भागमाना, कोणी कर्ण-रथान्तरे। शेष मन्वंशवद् भद्रे, निगमोऽशः परे समाः ॥५०४॥ कणे शंगद्वयं नन्द्यां, तिलकं च प्रत्यंगकम् । द्वयं रथे त्रयं भद्रे, नन्दी सैकेन्द्रनीलकः ॥ ५०५ ॥ भा टो०-तलना १६ भाग करीने कोण तथा पडरा बच्चे १ भागनी कोणी (नन्दी) करवी, बाकी दल विभक्ति १४ भागनी. जेम २-२ भागना कोण, पडरो, भद्रार्ध अने १-१ भागनी भद्रनन्दी करवी, भद्रनो निकालो १ भागनो करवो, बीजा अंगो निकाले समदल करवा. कोणे २-२ शंगो, नन्दी उपर तिलक अने प्रत्यंगो ८-८. पडरे २-२ शूगो, भरे ३-३ शूगो, भद्रनन्दीए १-१ शंग चढाववाथी — इन्द्रनील ' प्रासाद बनशे, अंडक संख्या ५३; कोणे ८, प्रत्यंगे ८, पडरे १६, भद्रे १२, भद्रनन्दीए ८, शिखरे १. तिलक ८ नन्दीए. १४ महानील तथा १५ भूधरनन्द्यां शृंगे महानीलो, रेखाधस्तिलके सति । रेखाधस्तिलकस्थाने, शृंगं यदि स भूधरः ॥५०६ ॥ भा०टी०-नन्दी उपर ( कोण पडरा बच्चेनी कोणी उपर ) तिलकना स्थाने शंग अने कोण उपर शंगना स्थाने तिलक करवाथी ' महानील' प्रासादनी रचना थाय छे, अंडक ५७; कोणे ४, प्रत्यंगे ८, पडरे १६, भद्रे १२, भद्रनन्दीए ८, कर्णनन्दीए ८ अने शिखरे १. तिलक ४ कोणे. ए ' महानील 'ना कोणे तिलकना स्थाने शंग चढाववाथी भूधर प्रासाद बने छे, अंडक ६१; कोणे ८, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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