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________________ प्रासाद-लक्षणम् ] २०३ दशहस्तादधो नास्ति, प्रासादो भ्रमसंयुतः । षट्त्रिंशांतं निरन्धाराः, कार्या वेदादि हस्ततः ॥४९३।। भा०टी०-१० हाथना मानथी ओछा माननो कोइ प्रासाद 'भ्रमदार' होतो नथी. ४ हाथथी ३६ हाथ सुधीना माननो प्रासाद निरन्धार (भ्रमहीन) करी शकाय छे, पण भ्रमवालो (सांधार) करवो ज होय तो तेनुं मान दश हाथ नीचे न होवु जोइए. पञ्चविंशतिः सांधाराः, प्रयुक्ता वास्तुवेदिभिः। भ्रमहीनास्तु ये कार्याः, शुद्धच्छन्देषु नागराः ॥४९४॥ भा०टी०-वास्तुशास्त्रना ज्ञाताओए प्रयोजेल जे २५ सांधार प्रासादो छे ते शुद्ध नागर छंदोमां भ्रमहीन पण करवा, आ उपरथी सिद्ध थाय छ के केसरी आदि प्रासादो भ्रमहीन पण करी शकाय छे, आधुनिक कारीगरो पण घणे भागे कनिष्ठ प्रासादो केसरी आदिमांना ज करे छे तेथी अमो पण अपराजितोक्त भ्रमदार पासादोना वर्णनने छोडीने वास्तुमरी आदिना निरूपणने अत्र उद्धृत करीये छीए. १ केसरीक्षेत्रेऽष्टभक्त द्वौ की, भद्रं वेदांशविस्तरम् । भागार्धनिर्गमः पश्चा-डकोऽयं केसरी मतः ॥४९५॥ । भाण्टी--प्रासाद भूमिने ८ भागे वहेंचीने २-२ भागना कोण अने ४ भागना विस्तारवालुं भद्र करवु. १ भागनो निर्गम करतो, आ प्रकारना पश्चांडक प्रासादने 'केसरी' ए नामथी मान्यो छे. आने अंडक ५ छे, कोणे ४, शिखरे १. ए पछीना सर्वतोभद्रा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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