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________________ १३६ [ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे जेटलो मन्दारक बनाववो. मंदारकने गोल अने कमलतंतुओ वडे सुशोभित करवो. चतुर शिल्पिओए बने मूल नासिकोना मध्य भागमा मूल नासिक तथा सिंह शाखाना समसूत्रे उंबराने स्थापनो, तेना निचला भागमां जाडंबो ने कणी (कर्णमाला) बनाववी, उपरनी गोलाईमां कमलमृणाल करवा, अने मन्दारनी बंने बाजु कीर्तिमुखो करवां, कीर्तिमुखो भृकुटिए कुटिलनेत्रवालां, दाढाओ बडे युक्त, नीचे कर्ण -उपकर्ण शूगोए शोभित, शाखापत्रोए अलंकृत करवां, बुद्धिमानोए उदुम्बरना बंने छेडाओ पासे तलछंदमां पीठ निर्गमवाली तेवी ज दलविभक्तिवाली शाखा करवी. अर्धचन्द्र क-प्रासादमण्डनेखुरकेण समंकुर्या-दर्धचन्द्रस्य चोच्छितिम् । द्वारव्याससमं कुर्या-निर्गमं च तदर्धतः ॥२७७॥ द्विभागमर्धचन्द्रश्च, भागेन द्रो गकारको । शंखपत्रसमायुक्तं, पद्माकारैरलंकृतम् ॥ २७८ ।। भा०टी०-अर्धचन्द्रनी उंचाई खुरा जेटली, लंबाई द्वारना विस्तार जेटली अने तेनो निर्गम लंबाईथी अर्थो करवो, अर्धचन्द्रशिलानी लंबाइना बे भागमा वच्चे अर्धचन्द्र करवो, अने एक भाग जेटली जगामा बने बाजुए बे गगारा करवा; गगारा, शंखो अने पद्मपत्रोए अलंकृत करवा. नागर-प्रासाददारोदय अपराजितपृच्छायाम्एकहस्ते तु प्रासादे, द्वारं स्यात् षोडशांगुलम् । कार्या षोडशतो वृद्धिः, पर्यन्ते च चतुष्करम् ॥२७९।। गुणांगुलाष्टहस्तान्तं, तत्परं द्वयंगुला करे । पश्चाशहस्तपर्यन्तं, प्रयुक्ता वास्तुवेदिभिः ॥२८०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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